हाईस्कूल फेल कर रहे अल्ट्रासाउंड
गाजीपुर : यह स्वास्थ्य विभाग और मुनाफाखोरों का कारनामा है कि अब मरीजों का अल्ट्रासाउंड हाईस्कूल फेल भी करने लगे हैं। ऐसे ही अप्रशिक्षितों की रिपोर्ट पर चिकित्सक मरीजों का इलाज कर रहे हैं। अगर आकड़ों पर नजर डाली जो तो ये चौंकाने वाले हैं। जनपद में 90 प्रतिशत से अधिक अल्ट्रासाउंड अप्रिशिक्षित लोग कर रहे हैं। इससे हर महीने मरीजों को धन के साथ अपनी जान गंवानी पड़ रही है।
सीएमओ कार्यालय के अनुसार जनपद में कुल 43 अल्ट्रासाउंड केंद्र पंजीकृत हैं। इनका पंजीयन तो किसी न किसी रेडियोलाजिस्ट के नाम से ही हुआ है लेकिन अल्ट्रासाउंड करता कोई और है। सूत्रों के मुताबिक इसमें से 90 प्रतिशत से भी अधिक केंद्रों पर कोई रेडियोलाजिस्ट नही हैं। यही स्थिति कई पंजीकृत नर्सिग होम की भी है। अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर निगरानी करने की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को है लेकिन बह अपनी आंख बंद किए हुए है। कहते हैं कि उन्हें तो अभी तक ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली।
क्या है एक्ट में प्रावधान : केंद्र सरकार की ओर से दस जनवरी 2014 को जारी अधिसूचना के अनुसार पीसी एंड पीएनडीएस एक्ट में कुछ सुधार कर अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालन के लिए नए मानक बनाए गए हैं। पहले सिर्फ रेडियोलाजिस्ट ही अल्ट्रासाउंड कर सकता था। अब कुछ शर्तो के साथ प्रशिक्षित एमबीबीएस चिकित्सक को भी अल्ट्रासाउंड का अधिकार दिया गया है। हालांकि नए मानक के अनुसार न तो कोई अल्ट्रासाउंड केंद्र काम कर रहा है और न ही स्वास्थ्य विभाग इसे लेकर गंभीर है। ज्यादातर केंद्र संचालकों को नए मानक की जानकारी तक नहीं है।
नए मानक : एमबीबीएस चिकित्सक भी अल्ट्रासाउंड कर सकता है। इसके लिए उसे मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया से मान्यता प्राप्त किसी संस्थान में छह महीने का प्रशिक्षण लेकर परीक्षा पास करनी होगी। पहले से जो एमबीबीएस चिकित्सक अल्ट्रासाउंड करे रहे हैं उन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। हालांकि उसकी परीक्षा पास करनी होगी। ये चिकित्सक सिर्फ गर्भवती महिलाओं का ही अल्ट्रासाउंड कर सकते हैं पूरे पेट का नहीं। वहीं रेडियोलाजिस्ट सभी प्रकार के अल्ट्रासाउंड कर सकते हैं। अल्ट्रासाउंड सेंटर खोलने के लिए सीएमओ कार्यालय में पंजीयन आवश्यक है। केंद्र पर मरीजों के बैठने और अन्य सुविधाएं होनी चाहिए। जिस रेडियोलाजिस्ट या एमबीबीएस डाक्टर के नाम से अल्ट्रासाउंड केंद्र पंजीकृत है उसकी डिग्री और फोटो अल्ट्रासाउंड केंद्र पर लगा होना चाहिए। ताकि अल्ट्रासाउंड कराने वाला मरीज यह देख सके कि जिसकी फोटो एवं डिग्री लगी है वही उसका अल्ट्रासाउंड कर रहा है।
70 फीसद रिपोर्ट गलत
- जनपद में जितना भी मरीजों का अल्ट्रासाउंड हो रहा है उसमें से 70 फीसद से भी अधिक के रिपोर्ट गलत होते हैं। तीस फीसद जो सही मिलते हैं उसमें भी ज्यादातर गर्भवती महिलाओं का होता है। कारण कि इनका अल्ट्रासाउंड करना आसान होता है। इसके बाद भी डाक्टर इसी रिपोर्ट पर इलाज कर रहे हैं जो गलत है। - डा. वीजेपी सिन्हा, सीएमएम जिला अस्पताल।