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मतदाताओं का मन जानना आसान नहीं

By Edited By: Published: Sat, 12 Apr 2014 06:29 PM (IST)Updated: Sat, 12 Apr 2014 06:29 PM (IST)
मतदाताओं का मन जानना आसान नहीं

गाजीपुर : नामांकन व मतदान की तिथि नजदीक आने के साथ ही प्रत्याशियों व समर्थकों की भागमभाग बढ़ती जा रही है। इसमें मौसम की बेरुखी और मतदाताओं की चुप्पी सियासत से जुड़े लोगों को पसीना छुड़ाने के साथ माथे पर बल डालने वाला साबित हो रहा। अल सुबह दिनचर्या निबटाने के बाद वाहनों के काफिले और समर्थकों की भीड़ के साथ घर से निकले प्रत्याशी दोपहर बारह बजे तक थक जा रहे हैं। सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि वे जहां जा रहे हैं अपना और पराया तय करना मुश्किल हो गया है।

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मतदाता है कि खामोशी अपनी तोड़ने के लिए तैयार ही नहीं है। बहुत कम लोग ही हैं जो खुलकर किसी न किसी प्रत्याशी के पीछे खड़े दिख रहे हैं। मतदाताओं का बड़ा तबका अपने इलाके की जर्जर सड़कों, सिंचाई की ध्वस्त व्यवस्था, बिजली संकट आदि पर प्रत्याशियों का नजरिया जानना चाहता है। हालांकि जो प्रत्याशी गांव-गिरांव में पहुंच रहा है वह आश्वासनों का पुलिंदा खोलने में कोई कंजूसी नहीं कर रहा है। हालांकि उन्हें उलाहने भी सुनने पड़ रहे हैं। मसलन, अचानक चुनाव आने पर जनता की याद आना। पांच वर्ष तक इलाके में कोई काम नहीं होना। नेता विशेष का अपनों को ठेका-पंट्टा दिलाना आदि।

जातिवाद का भी लिया जा रहा सहारा : चुनाव में जातिवाद का भी जमकर सहारा लिया जा रहा है। कुछ प्रत्याशी उस इलाके में अधिक समय दे रहे हैं जहां सजातीय मतदाताओं की बहुलता है। इस दौरान आसपास के गांव में बसे रिश्तेदारों को भी मनाने के टिप्स दिए जा रहे हैं।


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