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प्रपंची मनुष्य सुखी नहीं रह सकता: मुनिश्री विहर्ष सागर

By Edited By: Published: Tue, 02 Sep 2014 06:34 PM (IST)Updated: Tue, 02 Sep 2014 06:34 PM (IST)
प्रपंची मनुष्य सुखी नहीं रह
सकता: मुनिश्री विहर्ष सागर

जागरण संवाददाता, इंदिरापुरम :

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अपने मन को दुष्प्रवृत्तियों से हटा कर इंद्रियों को नियंत्रण में करने वाला ही उत्तम शौच का भागीदार होता है। मायाचारी, छल,कपट व प्रपंच से युक्त मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रहता है। यह बातें मंगलवार को इंदिरापुरम के नीतिखंड एक में चल रहे जैन समाज के दशलक्षण महापर्व एवं श्रावक साधना शिविर में श्रमण मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने कही। उन्होंने श्रद्धालुओं को बताया कि भगवान उसी के पास जाते हैं जो माया से रहित व लोभ से मुक्त होता है।

भगवत कृपा के लिए सबसे पहले अपने आप को दुष्प्रवृत्तियों को छोड़कर निर्मल बनना पड़ेगा। असत्य से दूर रहकर सत्य का अनुयायी बनना पड़ेगा।

शाम को 'पाप का बाप कौन' नामक लघु नाटिका का मंचन किया गया है। नाटिका में बताया गया कि किस तरह आदमी लोभ के चक्कर में पड़कर पाप का भागीदार बनता है। दिखाया गया कि पाप का बाप लोभ है। इसी वजह से आदमी पाप के दलदल में फंस जाता है। इस अवसर पर वीर सम्राट सागर महाराज, विहसंत सागर महाराज, विजयेश सागर महाराज, अभिनव जैन, अशोक जैन, अनुराग जैन, अशोक जैन समेत काफी संख्या में जैन समाज के भक्त मौजूद रहे। उधर वसुंधरा सेक्टर 10 स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर परिसर में पर्यूषण पर्व के चौथे दिन उत्तम शौच एवं भगवान पुष्पदंत के निर्वाण कल्पानक महोत्सव के रूप में मनाया गया। मंगलवार को भगवान की शांतिधारा पदम सेन जैन ने किया। आरती अंजू जैन ने की। इस अवसर पर लाडू का भोग लगाया गया। आचार्य पवन कुमार ने बताया कि उत्तम शौच के लिए मनुष्य को तन के साथ मन को भी पवित्र करना पड़ता है। लालच बुरी बला मानी जाती है। इसलिए कभी भी लालच के वशीभूत नहीं होना चाहिए।


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