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छूट गया रोजगार, कैसे चलेगा परिवार

फतेहपुर, जागरण संवाददाता : पहले से ही तंगहाली से जूझ रहे यमुना कटरी के गांव नोटबंदी के बाद संकट के म

By Edited By: Published: Fri, 09 Dec 2016 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 09 Dec 2016 01:00 AM (IST)
छूट गया रोजगार, कैसे चलेगा परिवार

फतेहपुर, जागरण संवाददाता : पहले से ही तंगहाली से जूझ रहे यमुना कटरी के गांव नोटबंदी के बाद संकट के मुहाने में आ खड़े हुए है। परदेशी बाबूओं के भरोसे परिवार की खिंचने वाली गाड़ी उनका रोजगार छूट जाने के बाद लड़खड़ा गई है। दिल्ली, पंजाब, गुजरात, कानपुर जैसे शहरों में फैक्ट्रियों में काम करने वाले युवाओं की छुट्टी कर दी गई है। कटरी गांवों में सैकड़ों की संख्या में वापस आए युवाओं के सामने परिवार कैसे चले इसका संकट गहरा गया है। यह बेचारे खुद व परिवार को खर्च चलाने के लिए घर का सामान गिरवी रखकर या फिर साहूकारों से कर्ज लेकर गृहस्थी चला रहे है। ¨चता इस बात की है कि फैक्ट्री से बुलावा न आया तो आगे की ¨जदगी कैसे चलेगी। यमुना कटरी के सरकंडी, जरौली, असोथर, मटिहा, घाटमपुर, देईमऊ, कोटवा, सरवल, सेवरामऊ, धर्मपुर, ललौली, दतौली, कोंडार आदि गांवों के युवा रोजगार के लिए महानगरों व गैर प्रांतों में कमाने के लिए पलायन कर गए। इन गांवों के तकरीबन दो हजार युवा फैक्ट्री आदि में नौकरी कर हर माह परिवार के खर्च के लिए पैसा भेजते थे। नोटबंदी के कारण ज्यादातर युवाओं के हाथ से रोजगार छिन गया और वह घर वापस आ गए। उन्हें यह कहकर छुट्टी में भेज दिया गया कि अभी मंदी का दौर है, काम शुरू होगा तो बुलाया जाएगा। परदेशी बाबूओं के लौटने से पूरे परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है। गांव के बुजुर्ग छेदालाल ने कहा कि पड़ोस के दुकान में दो हजार की उधारी हो जाने से अब वह भी सामान देने से मना कर दिया। पत्नी के जेवर रखकर घर का खर्च चलाना पड़ रहा है।

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यह कहते परदेशी बाबू

- मटिहा के सुनील कुमार ने बताया कि वह दिल्ली की एक इलेक्ट्रानिक कंपनी में नौ हजार की पगार में काम करता था। एक माह 18 दिन का वेतन भी नहीं दिया और नोटबंदी के तीसरे दिन ही यह कहकर छुट्टी कर दी कि काम होने पर बुलाया जाएगा। दिल्ली में बिना पैसा के गुजारा हो नहीं सकता ऐसे में घर आ गए है। अभी तो उधारी से ही खर्च चलाया जा रहा है।

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- कानपुर में रेड चीफ की दुकान में काम कर रहे मटिहा के इंद्रसेन ने कहा कि बाइस दिन से घर में बेकार बैठे हैं। काम छूट गया तो ¨चता इस बात की है कि बूढ़े माता-पिता व दो बच्चों का खर्च कैसे चलेगा। नोटबंदी ने हम गरीबों को ही तबाह कर दिया है।

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- सरकंडी बगहा के विजय करन दिल्ली की एक फाइबर फैक्ट्री में पांच साल से नौकरी कर रहा था। नोटबंदी के बाद फैक्ट्री संचालकों ने छुट्टी कर दी। विजय का कहना है कि वहां मिलने वाली ग्यारह हजार की पगार से उसका खुद का व परिवार का खर्च चलता था, अब तो आगे संकट ही दिखाई पड़ रहा है।

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- महाराष्ट्र के टाटा सीमेंट कंपनी में नौकरी कर रहे सरकंडी बगहा के फूल कुमार ने कहा कि बीस दिन पहले उसकी छुट्टी कर दी गई। गांव के एक साहूकार से पैसा लेकर परिवार का खर्च चलाया जा रहा है। ¨चता इस बात की है कि फैक्ट्री में काम न मिला तो खेती बेंचकर ही कर्ज चुकाना पड़ेगा।


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