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कमीशन पर चल रहा दवा, जांच का व्यवसाय

फतेहपुर, जागरण संवाददाता: डॉक्टरों के साथ पैथालॉजी व मेडिकल स्टोरों का गठजोड़ इतना ताकतवर है कि लाख प

By Edited By: Published: Sat, 18 Jun 2016 07:21 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jun 2016 07:21 PM (IST)
कमीशन पर चल रहा दवा, जांच का व्यवसाय

फतेहपुर, जागरण संवाददाता: डॉक्टरों के साथ पैथालॉजी व मेडिकल स्टोरों का गठजोड़ इतना ताकतवर है कि लाख प्रयास के बाद भी आप बिना कमीशन दिए न तो जांच करा सकते है और न ही दवा खरीद सकते है। आलम यह है कि डॉक्टर द्वारा लिखी गयी दवा उन्हीं मेडिकल स्टोरों में मिलती है, जहां उनका कमीशन सेट होता है। नाम न छापने की शर्त पर मेडिकल बिजनेस से जुड़े लोगों ने बताया कि जांच के नाम पर 40 और दवा के नाम पर 30 से 50 फीसद तक कमीशन डॉक्टर को देना होता है। अगर यह न किया जाए तो बिजनेस ही ठंडा पड़ जाएगा। बता दें कि निजी प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टर हो या फिर सरकारी अस्पताल में बैठने वाले वह भिन्न-भिन्न कंपनियों के एमआर से दवा बिक्री पर कमीशन सेट करते है। मतलब कि उनके द्वारा महीने में 10 से 20 हजार गोलियां मरीजों को लिखी जाएगी। उनकी बिक्री के आधार पर दवा कंपनी को कमीशन देना होगा। ठीक यही फार्मूला जांच के लिए भी अपनाया जाता है। डाक्टर सामान्य रोग पर भी मरीज की लगभग एक हजार रुपए तक की जांच करा देते है। जबकि उन जांचों की आवश्कता मरीज को नहीं होती। पैथालॉजी संचालक रजिस्टर में उनका नाम दर्ज कर यह सुनिश्चित कर देता है कि किस डाक्टर द्वारा माह में कितनी जांचे भेजी गयी। बेईमानी के इस धंधे में ईमानदारी नंबर एक की होती है। माह पूरा होने पर कमीशन वाली डॉक्टर तक पहुंचा दी जाती है।

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कमीशन का खेल इस तरह समझें

-नामचीन प्रेक्टिस डाक्टर व सीएचसी, पीएचसी तथा जिला अस्पताल में भिन्न भिन्न कंपनी के एजेंट लगते है। जो कि अपनी कंपनी का माल बेचने के लिए डाक्टरों को सेट करते है। दवा की बिक्री पर 50 फीसद तक कमीशन डाक्टर को, 20 फीसद तक दवा रखने वाले मेडिकल स्टोर को और 10 फीसद कमीशन स्वयं तथा पांच फीसद लाभ वह कंपनी पाती है जिसकी दवा है। इस प्रकार लगभग 100 रूपए में 85 रूपए कमीशन में चले जाते है। 100 रूपए खर्च करने पर मरीज को मात्र 15 रूपए की दवा हाथ लगती है। इसकी रोक के लिए न तो प्रशासन सख्त है और न ही सेहत महकमा।

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क्या कहते है जिम्मेदार..

- केमिस्ट एण्ड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष वीरेंद्र गुप्ता कहा कहना है कि पीजी वेस्ट दवाएं कोई भी मेडिकल स्टोर अपने आप से नहीं रखता है। चूंकि जितना कमीशन उसे पेटेंट दवाओं में मिलता उतना ही पीजी दवाओं। परन्तु मजबूरी यह है कि जब डाक्टर वही दवा लिखते है तो दवाएं रखना केमिस्ट की मजबूरी है।

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- सीएमओ विनय कुमार पांडेय कहते है कि जिले में अधोमानक दवाएं न बिके इसके लिए ड्रग विभाग को लगाम लगानी चाहिए। रही बात अस्पतालों में ऐजेंटों के बैठने की उस पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। कोई भी अनाधिकृत व्यक्ति पीएचसी, सीएचसी और जिला अस्पताल में न बैठे इसके लिए प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश जारी कर पालन कराया जाएगा।


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