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सियासी रण में 'ढाल' बनी इमदाद

फतेहपुर, जागरण संवाददाता : 'अरे मैकुआ या लेओ पेंशन के फार्म भरिके एक-दो दिन में दै देओ सबका पेंशन

By Edited By: Published: Sat, 04 Jul 2015 01:01 AM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2015 01:01 AM (IST)
सियासी रण में 'ढाल' बनी इमदाद

फतेहपुर, जागरण संवाददाता :

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'अरे मैकुआ या लेओ पेंशन के फार्म भरिके एक-दो दिन में दै देओ सबका पेंशन दिलाई जाई' पहले सीधे मुंह बात न करने वाले प्रधान जी गलियों में घूम-घूम कर कुछ इसी तरह मतदाताओं में डोरे डालने में लगे है। पेंशन भले न मिल पावे, लेकिन भरोसे को पु¨लदा तैयार करने का कार्य हर ग्राम पंचायत में चल रहा है। खास कर ग्राम पंचायत से जुड़े मजरों पर प्रधान जी की नजरें इनायत हो रही है।

नियम-कायदे ताक में रख रूठों को मानने और नए वोटर तैयार करने में सरकारी इमदाद बांटी जा रही है। यह चुनावी खेल ही है जो वर्षो से रोजगार ढूंढ रहे मजदूरों को अब घर बैठे मनरेगा में काम दिला रहा है। हैरत यह है कि पात्रता दरकिनार कर शौचालय, इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, समाजवादी पेंशन के जरिए वोट पक्का करने का सिलसिला तेज हो गया है। ग्राम सभाओं में प्रधान जी के अब तक के कार्यकाल पर भले ही काम न होने या जरुरतमंदों को काम न मिलने की शिकायतें रही हो, पर अब बचे कार्यकाल में शिकायतों का स्वरुप बदल गया है। विकास के नाम पर प्रधान हो या ब्लाक प्रमुख सियासी जमीन सींचने में जुट गये है। शुरू सियासी खेल में अपने को लाभ पहुंचाने पर जोर है। समग्र विकास की रट छोड अब संभावी वोट बैंक तैयार होता देख ही योजनाओं का लाभ प्रदान किया जा रहा है। उपरोक्त बातें सिर्फ कपोल कल्पना नहीं है बल्कि यह बातें गांव स्तर से उठकर अफसरों की चौखट तक शिकायत के रुप में पहुंच रही है। फिर चाहे वह फतेहनगर करसूमा का प्रकरण हो या फिर हसवा ब्लाक की आधा दर्जन ग्राम सभाओं मामला एक ही है। गांव में बंट रही सरकारी इमदाद की हालत यह है कि पंचायत सचिव प्रधान के हाथ की कठपुतली है। प्रधान जैसा चाहते है वैसा करना उनकी मजबूरी मानी जाए या फिर उसकी सशर्त सहमति। मनरेगा का हाल तो यह है कि जाब कार्ड धारक के पास प्रधान जी का प्रतिनिधि स्वयं जाकर बताता है कि दादा उनका नाम फला काम में दर्ज है। वह जाए या न जाए पैसा मिलेगा।

इनसेट..

जिनसे उम्मीद उनका नाम समाजवादी पेंशन में

पांच सौ रुपये मासिक लाभ प्रधानों के लिए इस चुनाव में वरदान साबित हो रहा है। चूंकि इसी लाभ के दम पर वह अपना वोट बैंक मजबूत करने में जुटे है। खबर तो यहां तक है कि प्रधान जिन्हें विपक्ष का मान रहें है उनके नाम सूची से कटवाने में कसर नहीं छोड रहे है। समाजवादी पेंशन का चुनावी करण हो जाने का सबसे बड़ा सबूत यह है कि प्रधान के दबाव में उन लोगों को भी पेंशन दी गयी है। जो खुद गाडी-मकान व सम्पन्नता के शिखर पर हैं। ऐसा किसी एक गांव में नहीं बल्कि हर गांव में हो रहा है।

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बाप संग बेटे को भी आवास

इंदिरा आवास के लिए पात्रता है कि परिवार के मुखिया के नाम आवास दिया जाए लेकिन प्रधानी के वोट मजबूत करने में किस कदर नियम ताक पर है। इसका उदाहरण यह है कि एक ही परिवार में बाप व बेटे को आवास तक प्रदान किए गए है। कहीं सास- बहू लाभार्थी बना दिए गए है। ऐसा नहीं कि यह अंजान प्रकरण है। बल्कि इनकी शिकायत भी जिला स्तर पर हो चुकी है।

पत्थर लगाने की होड़

सड़क बनेगी या नहीं यह तो समय के गर्त में हैँ, लेकिन इस समय जनता की मांग पर प्रधान, ब्लाक प्रमुख व जिला पंचायत सदस्यों में शिलान्यास की होड़ चल रही है। चार साल में जितने कार्य नहीं हुए उससे अधिक नए कार्यों के पत्थर लग गए है। नेता जी माला पहनकर विकास के लंबे-चौड़े वादे के साथ पंचायत के चुनावी माहौल को मजबूत कर रहे है। प्रधान जी गांव में कुछ कार्य कराने के लिए विधायकों व सांसद की गणेश परिक्रमा कर निधि से हैंडपंप व सीसी रोड की मांग कर रहे हैं।

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क्या बोले जिम्मेदार

इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन, विकलांग पेंशन, विधवा पेंशन, समाजवादी पेंशन या फिर मनरेगा में काम की बात हर एक लिए शासन ने मानक और नियम तय किए है। इन मानक और नियमों पर ही काम किया जाए ऐसे दिशा निर्देश भी मेरे द्वारा जारी है। फिर भी कोई मानक और नियम की अनदेखी करता है तो बख्सा नहीं जाएगा। आज नही तो कल उसकी हकीकत सामने आएगी।-भवानी ¨सह सीडीओ।


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