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डाक्टर-दवा कंपनी के गठजोड़ पिस रहा मरीज

By Edited By: Published: Sun, 17 Aug 2014 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 17 Aug 2014 01:00 AM (IST)
डाक्टर-दवा कंपनी के गठजोड़ पिस रहा मरीज

फतेहपुर, जागरण संवाददाता : मानव की सेहत सुधारने में आर्थिक मार का सामना न करना पड़े इसके लिए जेनेरिक दवाओं का निर्माण करने की छूट दी गई थी। इस छूट का बेजा अर्थ निकाल लिया गया है। उत्पाद के नाम पर छूट हजम की जाती है और अनाप-शनाप एमआरपी छापकर मरीजों का शोषण किया जा रहा है। दवा कंपनी सीधे डॉक्टरों से साठगांठ कर जेनेरिक दवाओं की खपत कराते हैं। प्रतिदिन लाखों रुपये का व्यापार किया जा रहा है।

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केंद्रीय रसायन विभाग ने जेनेरिक कंपनी को बाजार में उतारने से पूर्व सपना देखा था कि उत्पाद शुल्क में मिलने वाली छूट से सीधे मरीज लाभान्वित होगा। लेकिन यह सपना धरा का धरा रह गया है। सस्ती दवाओं के बजाए महंगी दवाएं बाजार में पटी पड़ी हैं। सस्ती जेनेरिक दवाओं को न तो डॉक्टर लिखते हैं मेडिकल स्टोर में उपलब्ध हैं। शहर से लेकर गांव तक में बहुतायत संख्या में मरीज देखने वाले डॉक्टर इसकी चपेट में हैं। कंपनी की सौदेबाजी से मरीजों को आर्थिक चोट पहुंचा रहे हैं।

क्या है गठजोड़

दवाओं के जानकारों की मानें तो कंपनियां सीधे डॉक्टर और नर्सिग होम से सीधे या फिर माध्यम (मीडिएटर) दवाएं लिखाने का काम करती हैं। यदि कोई दवा 100 रुपये की है तो उसमें 50 से 55 प्रतिशत डॉक्टर के हिस्से में जाता है, 20 फीसदी मीडिएटर लेता है। 12 प्रतिशत दवा बेचने वाले मेडिकल स्टोर के संचालक के हिस्से में जाता है। सवाल उठता है कि जब इतने बड़े हिस्से का बंदरबांट हो जाता है तो फिर दवा का क्या हाल होता होगा।

क्या हैं जेनेरिक दवाएं

केंद्रीय सरकार की नीति पर दवा कंपनियां संचालित होती है। कंपनी अगर किसी साल्ट (रसायन) से दवा बनाकर ब्रांड नेम से दवा बाजार में उतारती है तो उस पर टैक्स कई गुना ज्यादा है। जबकि जेनेरिक में साल्ट नेम और ब्रांड नेम से दवा बनाने पर छूट का प्राविधान दिया गया है।

मची लूट की बानगी

मरीजों की जेब में डाले जा रहे डाका में नजर दौड़ाएं तो दो से तीन गुना दाम ज्यादा वसूले जा रहे हैं। इस काम में कोई एक दो कंपनी नहीं ख्याति प्राप्त कंपनियों ने कदम रखे हैं। कंपनियों ने जेनेरिक डिवीजन बना रखा है। सिफ्लेक्सिन और ओ-फ्लाक्सासिन के कांबीनेशन टेबलेट ब्रांडेड में 119 रुपये की 10 टिकिया है तो जेनेरिक स्पीडोक्सिम 200 रुपए, जीफी-ओ 140 रुपये है। इसी तरह एमाक्सिलीन और पोटैशियम कैल्कुलेट साल्ट से निर्मित ब्राडेंड दवाएं 75 रुपए तथा जेनेरिक क्लेवमेक्टीन का दाम 141 रुपए है। इसी तरह इंजेक्शन में सिफाट्राक्सिजोन बांडेड 30 रुपए का बिक रहा है तो जेनरिक इंजेक्शन सी-वन 61.87 रुपए, नो-सेफ 81.85 रुपए का बाजार में बिक रहा है। इसी तरह ताकत का इंजेक्शन डेकाडेराबोलीन 25 एमजी का 131 रुपए, 50 एमजी का 215 रुपए का है। जबकि जेनरिक कंपनी का ओडेरान 50 एमजी 205, इल्डेका 50 एमजी 225 रुपए, जबकि इसी नाम की 25 एमजी शक्ति वाला इंजेक्शन आधे दामों में बाजार में बेचा जा रहा है।

लोक लुभावनी पैकिंग

जेनेरिक दवाओं की पैकिंग खासी लुभावनी होती है। जिसे देखकर अंदाजा तक नहीं लगाया जा सकता है कि खरीददार के साथ बड़ा धोखा किया जा रहा है। टेबलेट, इंजेक्शन, सिरप, लोशन आदि को कंपनी की ब्रांडेड दवाओं से बेहद जुदा पैकिंग में पैक करके बाजार में उतारा जाता है।

'दवाओं की एमआरपी से ज्यादा की बिक्री करते पाए जाने पर कार्यवाही का अधिकार है। एमआरपी के अंदर किसको क्या मिलता है। इससे मतलब नहीं है। जेनेरिक दवाएं वस्तुत: सस्ती होनी चाहिए कारण कि इनमें केंद्र सरकार द्वारा छूट दी जाती है। ज्यादा दाम की दवाओं की बिक्री पर वह कुछ नहीं कर सकते हैं।'

अजय कुमार संतोषी जिला ड्रग इंस्पेक्टर


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