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छापेमारी के बावजूद बन और बिक रही कच्ची शराब

फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता : कच्ची शराब का कहर जिले में बीते सप्ताह खूब बरपा। दस लोगों की जान गई, ल

By Edited By: Published: Sat, 23 Jul 2016 08:03 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jul 2016 08:03 PM (IST)
छापेमारी के बावजूद बन और बिक रही कच्ची शराब

फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता : कच्ची शराब का कहर जिले में बीते सप्ताह खूब बरपा। दस लोगों की जान गई, लेकिन प्रशासन के आंकड़ों में आठ मौतें ही दर्ज हुईं। बीते रविवार को मौतों का सिलसिला शुरू होने के साथ ही छापेमारी भी शुरू कर दी गई। पुलिस की इस कथित सख्ती के बावजूद जिले में कच्ची शराब बनने का कारोबार थम नहीं रहा है। और तो और शहर में ही बेधड़क कच्ची शराब न सिर्फ बन रही है, बल्कि बिक भी रही है। शायद यही कारण है कि एक ही बस्ती में कई बार छापेमारी हो चुकी है और जितनी बार छापेमारी होती है हर बार कच्ची शराब और लहन की बरामदगी भी होती है।

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बीते रविवार को जहरीली शराब के कारण छह लोगों की मौत हुई। इन मौतों के दो दिन बाद तक दो-दो लोग शराब से मरते रहे। पुलिस, प्रशासन और आबकारी विभाग की टीमों ने छापेमारी की। एक सप्ताह में आठ हजार लीटर लहन नष्ट कराया जा चुका है। 155 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। लगभग 1500 लीटर कच्ची शराब की बरामदगी भी बीते सात दिनों में हो गई। हकीकत यह है कि कच्ची शराब बनाने में लगे लोग इस कारोबार से अलग ही नहीं हो पा रहे हैं। तभी तो डीएम से लेकर एसपी तक एक ही बस्ती में कई बार छापेमारी कर चुके हैं, लेकिन हर बार लहन और कच्ची शराब बरामद हो जाती है। शहर में गिहार बस्ती लकूला, नेकपुर कलां और लालदरवाजा रामलीला गड्ढा में कच्ची शराब का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। पिछले एक सप्ताह में इन बस्तियों में जिला प्रशासन, आबकारी, पुलिस की टीम कई बार छापेमारी कर चुकी है। कभी एक हजार लीटर तो कभी 500 लीटर लहन यहां नष्ट कराया जा चुका है।

नजरे इनायत हैं बड़ी वजह

इन बस्तियों में पुलिस ही नहीं आबकारी विभाग के लोगों की भी नजरें इनायत रहती है। रहे भी क्यों न। आखिरकार मुसीबत के साथी भी इन्हीं बस्तियों के बा¨शदे हैं। शासन से लेकर डीएम तक का अगर छापेमारी का निर्देश आता है तो बिना देरी किए इन्हीं बस्तियों का रुख कर लिया जाता है और शराब भी बरामद होती है।

जिम्मेदार कहते हैं

पुलिस अधीक्षक राजेश कृष्ण का कहना है कि लगातार छापेमारी कर अवैध कारोबार पर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है। इन बस्तियों के लोगों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के प्रयास भी किए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब एक बार फिर नए सिरे से इस तरह की कोशिश की जाएंगी।


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