खेती के कुशल प्रबंधन से 40 फीसद बचा नुकसान
फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता : अतिवृष्टि की मार से जिले के आम अन्नदाताओं की जहां गेहूं, चना, मटर और अ
फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता : अतिवृष्टि की मार से जिले के आम अन्नदाताओं की जहां गेहूं, चना, मटर और अरहर की 60 फीसद तक फसल प्रकृति के प्रकोप की भेंट चढ़ गई। वहीं उन्नतशील तकनीक और कुशल प्रबंधन से खेती करने वाले किसानों ने अपने नुकसान को 20 फीसदी सीमित कर लेने में सफलता पाई। इन किसानों ने अगौती और पिछौती में अलग प्रजाति के बीच बोए, मौसम को देख पानी लगाया। फसल बोने से पूर्व मृदा परीक्षण कराया।
राष्ट्रपति से सम्मानित चौकी महमदपुर के प्रगतिशील किसान नारद ¨सह की फसल अतिवृष्टि के कहर से बच तो नहीं पाई, पर उन्होंने आधुनिक कृषि तकनीक व वैज्ञानिक प्रविधियों के बल से नुकसान को 20 फीसद तक सीमित करने में सफलता जरूर पा ली। परंपरागत खेती के स्थान पर आधुनिक विधि से खेती के लिए वह क्षेत्र के किसानों को जागरुक करने में भी जुटे हैं। उनके फार्म में इस बार भी 4 से 4.5 कुंटल बीघा गेहूं निकला। गत वर्षों में उत्पादन 5 से 6 कुंटल प्रति बीघा रहा था। सामान्य किसानों के खेत में बमुश्किल 2 कुंटल बीघा के हिसाब से ही गेहूं निकल रहा है। वह बताते हैं कि आलू या गेहूं की फसल से पहले वह मृदा परीक्षण कराकर न्याय पंचायत स्तर के किसान सहायक से परामर्श जरूर करते हैं। नवंबर में गेहूं की अगौती फसल के लिए 343, 502 व लोक वन प्रजाति के बीजों का उपयोग बेहतर है तो दिसंबर, जनवरी में हलना, गोल्डन हलना, के 7903 व 373 प्रजाति के बीजों का उपयोग किया। ज्यादा पानी में पौधे की जड़ गल जाती है या तेज हवा में पौधे जमीन पर आ जाते हैं। इसलिए मौसम का अंदाजा लगाकर पानी लगाना चाहिए। बादल और पानी के संबंध में रेडियो व टीवी आदि पर पूर्व सूचना आ जाती है। उसका भी लाभ उठाया। पानी गिरने की संभावना से दो-तीन दिन पूर्व ¨सचाई नहीं करनी चाहिए। ¨सचाई में इतनी देरी भी न हो कि पौधे सूख जाएं। गेहूं फसल में बस हल्की नमी रहनी चाहिए। खराब मौसम में पानी लगाने का जोखिम लेने से बचना जरूरी है। उनका कहना है कि अच्छे बीज का उपयोग अति आवश्यक है। कृषि और उद्यान विभाग के बीज लेने चाहिए।