चीनी से चोखा है गुड़ का धंधा
महेश वर्मा, कायमगंज(फर्रुखाबाद) : चीनी की कीमतों में भारी गिरावट ने जहां चीनी उद्योग की कमर तोड़ दी ह
महेश वर्मा, कायमगंज(फर्रुखाबाद) : चीनी की कीमतों में भारी गिरावट ने जहां चीनी उद्योग की कमर तोड़ दी है। करोड़ों की लागत वाली चीनी मिल प्रति वर्ष करोड़ों का घाटा दे रही है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग गुड़ का धंधा चोखा है और मुनाफा दे रहा है। फुटकर में गुड़ व चीनी का रेट एक ही होने से गुड़ के कारोबारी मजे में हैं।
स्थानीय सहकारी चीनी मिल की सीमित पेराई क्षमता और गन्ने की व्यापक पैदावार होने से कुल गन्ना पैदावार का लगभग 25 प्रतिशत गन्ना ही चीनी मिल खरीद पाती है। चीनी मिल में पूरी फसल का गन्ना सट्टा न बन पाने व आपूर्ति पर्चियां मिलने में होने वाली बाधा से किसानों को गन्ना आपूर्ति करने में भारी परेशानी रहती है। गन्ना फसल तैयार होने पर किसान उसे काटकर नई फसल की तैयारी करना चाहते हैं। जिसके लिये गन्ने की फसल कटने के बाद बिक्री होना जरूरी है, अन्यथा फसल सूख जायेगी। गन्ना फसल मंडी में तो बिकती नहीं, इसे खरीदने वाले या कोल्हू संचालक हैं या चीनी मिल। इस कारण उन्हें मजबूरी में औने-पौने भावों पर कोल्हू व क्रेसर पर गन्ना बेचना पड़ता है। चीनी मिल में गन्ने का मूल्य 280 रुपये व कोल्हू पर औसत मूल्य 180 रुपये प्रति कुंतल रहता है। भारी खर्चों के साथ चीनी मिल में एक कुंतल गन्ने में लगभग 8.5 किग्रा चीनी निकलती है। चीनी के वर्तमान थोक रेट 2770 रुपये प्रति कुंतल की दर से जिसकी कीमत 235 रुपये होती है। जबकि कोल्हू पर 180 रुपये में खरीदे गये एक कुंतल गन्ने से 10 किग्रा. गुड़ बनता है, जिसकी कीमत थोक रेट 2400 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से 240 रुपये होती है। जबकि गुड़ बनाने में चीनी की तुलना में लागत भी काफी कम आती है। इन दिनों चीनी व गुड़ के फुटकर भाव 30 रुपये प्रति किग्रा चल रहे हैं। जिससे स्पष्ट है कि गुड़ का धंधा चीनी से बेहतर है।