एक अदद कमरे को मोहताज नवाब साहब
तफहीम खां, फर्रुखाबाद : 27 दिसंबर को फर्रुखाबाद को बसे 300 वर्ष हो जाएंगे। शहर की बुनियाद रखने व
तफहीम खां, फर्रुखाबाद :
27 दिसंबर को फर्रुखाबाद को बसे 300 वर्ष हो जाएंगे। शहर की बुनियाद रखने वाले नवाब मोहम्मद खां बंगश की रियासत में कभी 84 लाख रुपये सालाना की मालगुजारी आती थी। लेकिन मुफलिसी की मार से वह अब सिर छुपाने के लिए एक कमरे को मोहताज हैं। लगभग डेढ़ सौ साल तक फर्रुखाबाद पर शासन करने वालों के वंशज और महलों के वारिस नवाब काजिम अली खां का नया पता कांशीराम कालोनी है। यहां वह एक कमरे के आवास संख्या 958 में अपने बेटे, बहू व पांच पोतियों के साथ गुजर-बसर कर रहे हैं। शहर के बीच बीबी साहिबा के महल के पास जिस जायदाद को नवाब काजिम हुसैन बंगस अपनी बताते हैं उस पर दबंगों का कब्जा है। 1972 में पिता नवाब फितनत हुसैन के इंतकाल के बाद उन्हें वसीका मिलना भी बंद हो गया।
लगभग 60 साल की उम्र पार कर चुके काजिम हुसैन के परदादा नवाब तफज्जुल हुसैन खां फर्रुखाबाद के आखिरी शासक थे। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करने की सजा के तौर पर मुल्कबदर कर मक्का भेज दिया गया तथा उनके भाई सखावत हुसैन को 17 फरवरी 1857 को फतेहगढ़ किले में फांसी दे दी गई थी। दूसरे भाई गजनफर हुसैन को 13 सितंबर 1862 को घुमना पर पीपल के पेड़ पर फांसी दी गई थी। नवाब काजिम हुसैन के बाबा नवाब असगर हुसैन को मस्जिद बीबी साहिबा स्थित महल में कैद कर दिया गया था। महल के एक हिस्से में मस्जिद तामीर है और दूसरे में पेड़ व खाली जगह है। जनानखाने की जगह पर लोगों का कब्जा है।
काजिम हुसैन बताते हैं कि नवाब तफज्जुल हुसैन ने अंग्रेजों से कई बार मुकाबला किया। अंग्रेजों ने हरदोई की ओर से आकर हमला किया। सलेमपुर के आगे नवाब और अंग्रेजों की सेना में मोर्चा हुआ। मोर्चे के कारण ही इस गांव का नाम मुच्चा पड़ा, जो बाद में मुजहा हो गया। खटकपुरा के रहने वाले नासिर खां ने अंग्रेजों से लोहा लिया। पकड़े जाने पर नासिर खां को अमृतपुर से चारपाई पर बांधकर लाया गया और घुमना के पीपल पर फांसी दी गई। इसके बाद ¨लडसे नाम के अंग्रेज ने अपने नाम से ¨लडसेगंज मंडी बनाई जो अब ¨लजीगंज के नाम से प्रसिद्ध है। नासिर खां के भाई नादिर खां की जायदाद जब्त कर तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ग्राटगंज बसाया था।
पिता नवाब फितनत हुसैन खां को 105 रुपये प्रति महीने का वसीका मिलता था। वर्ष 1972 में उनके देहांत के बाद वसीका भी बंद हो गया। दो साल पूर्व हैवतपुर गढि़या स्थित कांशीराम कालोनी में आशियाना तो मिल गया, लेकिन परिवार को रोजी रोटी की समस्या अब भी है। बंद हो चुके नवाबी वसीके को पाने के लिये वह प्रशासनिक अफसरों से लेकर मुख्यमंत्री दफ्तर तक को अनगिनत पत्र भेज चुके हैं। उनका बेटा जावेद हुसैन खां जरदोजी का छोटा-मोटा काम करता है।
हर साल 27 दिसंबर को फर्रुखाबाद के स्थापना दिवस पर समारोह आयोजित होते हैं, लेकिन आयोजक नवाब के वंशज को इसमें बुलाते तक नहीं हैं। वह बताते हैं कि हर साल की तरह इस बार भी वाहिश्त बाग स्थित मजार पर घर के लोगों के साथ चिरागां करने जाएंगे।