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प्रेम पंथ ऐसो कठिन हर कोई निबहत नाहिं

By Edited By: Published: Sun, 06 Apr 2014 09:53 PM (IST)Updated: Sun, 06 Apr 2014 09:53 PM (IST)
प्रेम पंथ ऐसो कठिन हर कोई निबहत नाहिं

अयोध्या: रहिमन मैन तुरंग चढि़ ज्यों पावक मह जाहिं, प्रेम पंथ ऐसो कठिन हर कोई निबहत नाहिं। संत तुलसीदास योग एवं प्राकृतिक चिकित्सालय के सभागार में प्रवचन करते हुए यह पंक्ति उद्धृत की पं. राधेश्याम शास्त्री ने। उन्होंने कहा कि यह सही है कि भगवान को पाने का मार्ग सीधा-सरल है किंतु इस पर गुजरना आसान नहीं है। दुनियादारी में उलझकर हम सभी को टेढ़-मेढ़े रास्ते से गुजरने की आदत है पर सरल-सीधी राह हम भूल चुके हैं। सरल-सीधी राह के लिए स्वयं को उस परम प्यारे के चरणों में न्यौछावर करना पड़ता है और इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए भक्त शिरोमणि पलटू ने कहा है, सोई सती सराहिए जो जरै पिया के संग। उसकी प्रतिष्ठा में स्वयं को खत्म करने की कला का नाम ही धर्म है। प्रवचनकर्ता ने अनेक दृष्टांत देते हुए बताया कि उसे ही भगवान मिला है जिसने स्वयं को खत्म कर दिया। कहा कि सामान्य अर्थो में स्वयं का अहंकार पोषित करना कठिन है और खत्म करना आसान है पर खत्म करना क्रांति की तरह है। कुंती, शबरी, विदुर आदि ऐसे किरदार हैं जिन्होंने स्वयं को खत्म किया और बदले में भगवान को प्राप्त किया और यही द्वैत का शमन है। जब हम नहीं बचते तो वह ही रह जाता है।

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उत्तर तोताद्रि मठ में बाल्मीकीय रामायण पर प्रवचन करते हुए जगद्गुरु डॉ. राघवाचार्य ने भगवान राम एवं परशुराम के संवाद को विषय बनाया। परशुराम ने राम से कहा कि हे प्रभो आप परात्पर ब्रह्मा हैं। यह कहते हुए परशुराम ने राम जी को आशीर्वाद दिया और उसी क्षण सारे देवता भी होकर राम जी का बखान करने लगे। परशुराम ने कहा कि हे प्रभु आप लज्जित मत होना। यदि मैं पराजित हुआ हूं तो किसी सामान्य व्यक्ति से नहीं अपितु परात्पर ब्रह्मा से। कथा व्यास ने बताया कि विवाह से लौटने के बाद अयोध्या में 12 वर्ष तक नित्य उत्सव मनाया गया। जगद्गुरु ने तदुपरांत वनगमन की चर्चा की एवं इस क्रम में भगवान राम सहित भरत एवं लक्ष्मण के गुणों की चर्चा की। इस अवसर पर संस्कृतज्ञ डॉ. रामप्रसाद मिश्र, महंत बृजमोहनदास, गोविंदकुमार लोहिया, स्वामी माधवाचार्य आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

फैजाबाद स्थित नीलविहार कालोनी में प्रवचन करती हुई रामकथा मर्मज्ञ डॉ. सुनीता शास्त्री ने राम कथा के साथ रामचरितमानस के अवतरण का प्रसंग छिड़ा। उन्होंने याद दिलाया कि वह संवत 1631 में वह रामनवमी का मौका ही था, जब गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना शुरू की और वह मंगलवार का ही दिन था। कथा व्यास ने इसे अत्यंत सुयोग बताया कि इस बार भी राम नवमी मंगलवार को ही पड़ रही है। उन्होंने अयोध्या की विस्तृत सीमा भी परिभाषित की और बताया कि फैजाबाद स्वाभाविक रूप से अयोध्या में ही है। गोसाईगंज वृहत्तर अयोध्या का द्वार था और गोंडा का मूल नाम गोष्ठ था, जहां अयोध्या की गाएं चरने जाया करती थीं।


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