अयोध्या : 24 वर्ष में ध्वंस की तनातनी से उबरी रामनगरी
प्रधानमंत्री पद पर नरेंद्र मोदी की ताजपोशी और गत वर्ष संगठन के मुख्य शिल्पी अशोक सिंहल की मृत्यु के बाद मंदिर आंदोलन की धार कुंद पड़ी है।
अयोध्या (रघुवरशरण)। अयोध्या के विवादित ढांचे को लाखों की भीड़ के बीच छह दिसंबर की तारीख में 24 वर्ष पहले ढहा दिया गया था। तब अयोध्या में सिर्फ देश भर से आए कारसेवक नजर आ रहे थे, जो लोग ढांचा ध्वंस की भीड़ में शामिल थे या उन्हें प्रोत्साहित कर रहे थे।
प्रतिक्रिया में दूसरा समुदाय गम और गुस्से में था। इस तनातनी से पार पाना चुनौती थी। वक्त के साथ रामनगरी इस चुनौती से पार पाती लग रही है। ध्वंस की बरसी की पूर्व संध्या पर अयोध्या रामविवाहोत्सव- रामायण मेला के साथ रोज-मर्रा की गतिविधियों में जुटी है। हालांकि किसी कोने में ध्वंस की स्मृति जिंदा रखने की कोशिश हैं। आज कारसेवकपुरम में शौर्य दिवस तथा मुस्लिम लीग जैसे संगठनों की ओर से काला दिवस मनाने की तैयारी है पर उसमें पूर्व के वर्षों की तुर्शी नहीं है।
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प्रधानमंत्री पद पर नरेंद्र मोदी की ताजपोशी और गत वर्ष संगठन के मुख्य शिल्पी अशोक सिंहल की मृत्यु के बाद मंदिर आंदोलन की धार कुंद पड़ी है। इसी वर्ष फरवरी में बाबरी मस्जिद के मुख्य मुद्दई मोह. हाशिम अंसारी का निधन हो गया। वे यह संदेश दे गए कि मंदिर-मस्जिद को आपसी समझौते से हल करना होगा। ...तो इस दिशा में संगठित मुहिम संचालित करने वाली अयोध्या-फैजाबाद नागरिक समझौता समिति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन पेश किया गया है।
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आवेदन के साथ दोनों जुड़वा शहर के दस हजार से अधिक हिंदू-मुस्लिमों के हस्ताक्षर हैं। आवेदन के साथ समझौते का प्रपत्र है। इसके अनुसार एक पक्ष को रामलला विराजमान स्थल पर मंदिर और दूसरे पक्ष को विवादित स्थल से कुछ दूरी पर मस्जिद स्वीकार्य है। इस मुहिम के प्रमुख लोगों में शुमार और अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सादिक अली बाबू भाई के अनुसार बहुसंख्यकों की आस्था का ख्याल रखते हुए रामलला को उनके स्थान से हटाने की मांग जायज नहीं है और बहुसंख्यकों को भी अल्पसंख्यकों की आस्था का आदर करना होगा।
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यह विरासत नगरी की जड़ों में है। वैदिक ऋषियों, राम और रामायण की केंद्रीय भूमि होने के साथ यहां पांच जैन तीर्थंकरों के जन्म और संस्कार, बुद्ध की उपदेश स्थली, सिख गुरुओं की सत्संग-साधना से गौरवान्वित अयोध्या में मध्यकाल-उत्तर मध्यकाल के बीच बड़ी संख्या में चमत्कारिक सूफी संत धूनी रमा चुके हैं। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरजीत सिंह कहते हैं, राम मंदिर के साथ नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय शक्ति-समृद्धि के अभियान में सहयोगी बनना होगा। वे उम्मीद जताते हैं, अनुकूल अवसर आने पर मोदी मंदिर-मस्जिद विवाद का समुचित हल भी ढूंढ़ेंगे। आर्थिक-राजनीतिक तौर पर आज रामनगरी का मुख्य एजेंडा नोटबंदी का होकर रह गया है। अधिसंख्य लोग प्रधानमंत्री के स्वप्न में उड़ान भर रहे हैं।