परंपरा ने ओढ़ ली आधुनिकता की चादर
फैजाबाद, संचार क्रांति के कारण नववर्ष पर बधाई कार्डों के जरिए शुभकामना संदेश देने का चलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। इसका जीता-जागता प्रमाण शहर के मुख्य बाजारों में लगने वाली बधाई क ाडरें की वे दुकानें हैं, जो नया साल के शुरू होने के बाद भी सूनी पड़ी हैं।
दुकानदार सूरज लाल कहते हैं कि पहले बधाई व शुभकामनाओं के लिए भेजे जाने वाले ग्रीटिंग कार्डो की खरीदारी के लिए पहले महीने भर पहले से दुकानें सज जाया करती थीं और उपभोक्ता भी उसी समय से ग्रीटिंग कार्डो की खरीदारी के लिए दुकानों पर उमड़ पड़ते थे। प्रिंटेंड कार्डो केसाथ ही हस्त निर्मित काडरें की भी मांग रहती थी। आज स्थिति विपरीत दिखाई पड़ रही है। ईमेल और मोबाइल ने परंपरा पर ग्रहण लगा दिया है। अब अधिकतर लोग मोबाइल पर 'हाय-हैलो' कर और बधाइयां देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करने लगे हैं।
व्यवसायी अनूप गुप्त कहते हैं कि समय के बदलाव ने परंपरा को नया मोड़ दे दिया है। अब नई परंपरा की शुरुआत हो गई है। अब नववर्ष शुभकामना अथवा बधाई कार्ड की ओर युवाओं का रुझान कम हो गया है। न कार्ड, न लिफाफा और न ही टिकट की किचकिच, बस मोबाइल नंबर मिलाया और काम पूरा हो गया। युवा अनुराग कहते हैं कि वे अपने मोबाइल से अभी से लोगों को नये वर्ष का शुभ संदेश देने लगे हैं। वह कहते हैं कि तकरीबन 45 से 50 लोगों को शुभ संदेश देना होता है। मोबाइल ने काम आसान कर दिया है। वहीं युवा दिलीप कहते हैं कि कार्डो के आदान-प्रदान का जो आनंद नववर्ष पर मिलता था, लोग कार्डो के आने का इंतजार करते थे, उसे आधुनिकता की चादर ने अपने में समेट लिया है। यही वजह है कि नया वर्ष शुरू होने के बाद भी रिकाबगंज, फतेहगंज, बजाजा, मोदहा व चौक में ग्रीटिंग कार्डो की सजने वाली पारंपरिक दुकानें सिमट गई हैं। जो कुछ लगी भी हैं उन पर आशा के अनुरूप उपभोक्ता नहीं दिखाई दे रहे हैं और न ही पहले जैसी रौनक दिखाई देती है। युवा तो युवा, हर वर्ग ग्रीटिंग कार्डो से दूर होता दिखाई देता है। अतीत से वर्तमान पर परंपरा पर गौर किया जाय तो पता चल रहा है कि 20 से 25 फीसदी लोग ही बचे हैं जो परंपरा को थोड़ा सहेजे हुए हैं। शेष लोगों ने आधुनिकता की चादर ओढ़ रखी है।
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