खतरा बनीं खंडहर होती इमारतें
अयोध्या: बरसात की दहलीज पर नगरी की अनेक प्राचीन इमारतें खतरा बनकर खड़ी हुई हैं। गत वर्ष 24 अप्रैल को
अयोध्या: बरसात की दहलीज पर नगरी की अनेक प्राचीन इमारतें खतरा बनकर खड़ी हुई हैं। गत वर्ष 24 अप्रैल को आए भूकंप के दौरान नगरी की कई पुरानी इमारतें हिल गई थीं और इक्का-दुक्का ढह भी गई थीं। इसके बाद नगरपालिका प्रशासन ने नगरी की 174 जर्जर इमारतों को चिह्नित किया और भवन स्वामियों को उन्हें गिराने का आदेश दिया। एक वर्ष से अधिक समय हुआ, इस आदेश पर अमल लंबित है। उल्टे मौजूदा बरसात के मुहाने पर ऐसी इमारतें फिर डरावनी प्रतीत हो रही हैं। नगरी में ऐसे मंदिरों की पूरी श्रृंखला है, जो सौ से लेकर तीन सौ वर्ष तक पुरानी हैं और जो ढह भी रही हैं पर उनका कुछ हिस्सा सलामत है। यह रिहायश के काम आने से कहीं अधिक भविष्य के प्रति आशंका पैदा कर रहा है। मिसाल के तौर पर शास्त्रीनगर मोहल्ला में मुख्य मार्ग पर स्थित शीशमहल मंदिर है। कभी भव्यता का प्रतीक सैकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर के मुख्य द्वार का कुछ हिस्सा ढह गया है और बाकी बचे हिस्से को लेकर प्रत्येक बरसात में आशंका उठ खड़ी होती है। आसपास की रफ्त-जफ्त को देखते हुए इसे काफी खतरनाक माना जाता है। राम की पैड़ी स्थित आलमगीरी मस्जिद तो कब की ध्वस्त हो चुकी है लेकिन उस पर खड़ी भारी-भरकम मीनार अतीत की भव्यता बयां करने के साथ भविष्य के प्रति आशंका पैदा कर रही है। विशेषज्ञों की मानें तो यह मीनार कभी भी ढह सकती है और इसकी चपेट में बड़ी संख्या में लोग आ सकते हैं।
पूर्व में जा चुकी है लोगों की जान
ऐसा नहीं है कि पूर्व में इस तरह के संकट का सामना नहीं करना पड़ा है। दो दशक पूर्व चित्रगुप्त मंदिर की नींव ढह जाने से एक राहगीर की मौत हो गई थी, तो राजद्वार उद्यान की ऊंची सतह ढहने से उसकी चपेट में आधा दर्जन से अधिक यात्री अपनी जान गवां चुके हैं। करतलिया आश्रम के अधिकारी रामदास त्यागी के अनुसार प्रशासन को ऐसे मामलों में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए पर उसकी प्राथमिकता में ऐसे खतरों से निपटो की चुनौती काफी नीचे है।