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खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर नौनिहाल

रामपुरभगन (फैजाबाद): एक ओर जहां राज्य सरकार प्राइमरी स्कूलों के निर्माण और उसके रखरखाव के लिए पानी

By Edited By: Published: Mon, 31 Aug 2015 12:01 AM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2015 12:01 AM (IST)
खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर नौनिहाल

रामपुरभगन (फैजाबाद): एक ओर जहां राज्य सरकार प्राइमरी स्कूलों के निर्माण और उसके रखरखाव के लिए पानी की तरह पैसा बहाती है वहीं प्राथमिक विद्यालय माहनमऊ के पांच दर्जन स्कूली बच्चे कीचड़युक्त दलदली जमीन और खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करने को मजबूर हैं। करीब 28 वर्ष पूर्व यहां बने विद्यालय का भवन जर्जर हो चुका है। जिसकी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी जा चुकी है। जहां भयग्रस्त बच्चे तथा अध्यापक बैठकर अपना जीवन संकट में नहीं डालना चाहते। विद्यालय में संसाधन नदारत है। यहां तक की बच्चों को बैठने के लिए टाटपट्टी तथा पढ़ने सीखने के लिए श्यामपट्ट भी नहीं है। स्कूल में ही आंगनबाड़ी केंद्र को जगह दी गयी है। जहां स्कूलों तथा आंगनबाड़ी के बच्चे एक साथ घुल मिलकर बैठते हैं। स्कूल की बाउंड्रीवाल आज तक नहीं बनी जिससे सरकारी जमीन सयाने ग्रामीण हजम कर ले रहे हैं। विद्यालय में दो अध्यापिकाएं यहीं शिक्षामित्र थीं। जो प्रोन्नत हो गयीं। प्रधानाध्यापक रहे व्यक्ति से खंड शिक्षा कार्यालय में बाबू गिरी करायी जा रही है। गत 15 दिनों से यहां एमडीएम ही नहीं बन पाया। अब तक ड्रेस आदि भी नहीं बंटी है।

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सर्व शिक्षा अभियान की सच्चाई तथा बेसिक शिक्षा विभाग की बेपरवाही परखना हो तो आप रामपुर भगन से महज एक किलोमीटर दूर ग्राम मोहनमऊ चले आइए। तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के मत्स्य राज्यमंत्री एवं पड़ोसी गांव के निवासी सीताराम निषाद ने मई 1987 में शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए यहां प्राथमिक विद्यालय का भवन बनवाकर शिलान्यास किया था। एकाध दशक तो सब ठीक रहा। लेकिन उदंड ग्रामीणों की शरारत तथा विभागीय अनदेखी के चलते यह स्कूल झाड़ी जंगल में बदलने लगा। तमाम संसाधन चोरी या नष्ट हो गये तो कई स्कूल के प्रभारियों की लालच और ग्रामप्रधानों की बदनीयती की भेंट चढ़ गये। जागरण ने जब विद्यालय का निरीक्षण किया तो यहां के हालात बेहद ¨चताजनक दिखी। जहां पहले तीन सौ से अधिक छात्र संख्या थी। वहां महज 71 बच्चे पंजीकृत हैं। जबकि मौके पर कुल 19 छात्र पाए गये जिन्हें कार्यवाहक प्रधानाध्यापिका पूनम भारती तथा कुसुम वर्मा जमीन पर बैठाकर पढ़ाती मिली। इसी में आंगनबाड़ी के बच्चे भी शामिल थे। कार्यकर्ता तथा सहायिका किसी भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दे सकीं।

कार्यवाहक प्रधानाध्यापिका पूनम भारती ने बताया कि स्कूल की छत, दीवारों तथा फर्श आदि की स्थिति काफी खराब है। इसी के चलते बच्चों को बाहर पेड़ के नीचे बैठा कर पढ़ा रही हैं। शौचालय जंगली घास तथा झाडियों से अटा पड़ा है। सीट, दरवाजे सब बेहद क्षतिग्रस्त हैं। अगस्त माह बीत जाने पर भी बच्चों को स्कूली ड्रेस तथा सभी

पुस्तकें नहीं मिल पायी हैं। पता चला कि जुग्गीलाल वर्मा यहां के ग्राम प्रधान हैं जो स्कूल में झांकने तक नहीं आते।

प्रभारी तो गया प्रसाद हैं जो खंड शिक्षा अधिकारी कार्यालय तारुन में एबीआरसी बनकर बाबूगिरी में मस्त है। जब काफी प्रयास के बाद उनसे जागरण ने स्कूल की दुर्दशा तथा उठाए गए कदमों की बाबत पूछा तो उन्होंने उल्टा सवाल दागा कि जब बच्चों और अभिभावकों को परेशानी नहीं है तो आपको क्या समस्या है जबकि एबीएसए ने फोन ही काट दिया। यहां पिछले 15 दिनों से राशन के अभाव में मध्याह्न भोजन ही नहीं मिला था। इससे छात्र-छात्राओं की संख्या और प्रभावित थी। कोटेदार गौरव ¨सह कहते हैं कि वह राशन की उठान के साथ ही मांग के अनुरूप राशन ग्राम प्रधान तथा प्रधानाध्यापक/ एबीआरसी को हस्तगत करा देते हैं।


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