रामनगरी की पोर-पोर में है गुरु पूर्णिमा की परंपरा
अयोध्या: गुरु पूर्णिमा की परंपरा रामनगरी की पोर-पोर में समाहित है। सनातन परंपरा के अनेक पहुंचे गुरुओ
अयोध्या: गुरु पूर्णिमा की परंपरा रामनगरी की पोर-पोर में समाहित है। सनातन परंपरा के अनेक पहुंचे गुरुओं का सरोकार अयोध्या से ही रहा है। वे गुरु वशिष्ठ रहे हों या विश्वामित्र। गुरु विश्वामित्र के नाम से स्थापित आश्रम का वजूद जनवरी 1993 में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के अधिग्रहण में समाहित हो मिट चुका है पर गुरु के रूप में उनकी विरासत बरकरार है। जिस अनुपात में यहां रामकथा रची-बसी है, उसी अनुपात में गुरु विश्वामित्र का किरदार लोगों की जेहन में ¨जदा है। जबकि गुरु वशिष्ठ अपनी पौराणिकता के साथ पुरातात्विक ²ष्टि से भी अक्षुण्ण हैं। इसकी गवाही रामकोट मोहल्ला स्थित वशिष्ठ कुंड से मिलती है। मान्यता है कि गुरु वशिष्ठ ने इसी स्थल पर साधना की। कुंड से लगा हुआ गुरु वशिष्ठ का आकर्षक मंदिर भी है, जिसमें भगवान राम सहित चारो भाई का गुरु सेवा में रत विग्रह है। अन्य चित्रों के माध्यम से भी गुरु वशिष्ठ का प्रसंग विवेचित है। नयाघाट मोहल्ला में वशिष्ठ भवन नाम से स्थापित एक अन्य मंदिर भी गुरु वशिष्ठ से समीकरण स्थापित करता है। मंदिर के महंत डॉ. राघवेशदास के अनुसार वशिष्ठ भवन का वजूद भले ही गुरु वशिष्ठ जितना पुराना न हो पर यह शताब्दियों से गुरु की विरासत का वाहक तो है ही। नगरी में पौराणिक परंपरा के एक अन्य प्रतिनिधि गुरु वृहस्पति की भी विरासत विद्यमान है। यह टेढ़ीबाजार चौराहा स्थित वृहस्पति कुंड है। यद्यपि गड्ढे की शक्ल में बचा कुंड अपनी विरासत से न्याय नहीं कर पा रहा है। पौराणिकता के साथ नगरी में गुरु-शिष्य परंपरा का समृद्ध इतिहास संवाहित है। रामानुजीय एवं रामानंदीय परंपरा की नगरी में हजारों मंदिर हैं और इन मंदिरों की परंपरा का प्राण गुरु-शिष्य परंपरा ही है। न केवल मंदिरों की विहंगम व्यवस्था शिष्यों के सहयोग से पोषित होती है बल्कि गुरु के महाप्रयाण पर कोई शिष्य ही संबंधित मंदिर का उत्तराधिकारी होता है। शुक्रवार को गुरु पूर्णिमा के मौके पर यह परंपरा तब और चटख होगी, जब हजारों मंदिरों के आचार्यों के पूजन के लिए लाखों शिष्यों का सैलाब रामनगरी की ओर उन्मुख होगा। जिक्र गुरु परंपरा का हो, तो रामनगरी में सिख गुरुओं के आगमन की स्मृति भी ¨जदा होती है। समय-समय पर यहां प्रथम गुरु नानक से लेकर नवम गुरु तेगबहादुर एवं दशम गुरु गो¨वद ¨सह तक आ चुके हैं। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड एवं नजरबाग सथित गुरुद्वारा गो¨वद धाम से रामनगरी से सिख गुरुओं के सरोकार की पुष्टि होती है।