ऐसा लगा लोहे के जलते डिब्बे में कैद हो गए..
फैजाबाद : ऐसा लगा मानों एक जलते हुए लोहे के डिब्बे में कैद होकर रह गए हैं हम लोग। चारों ओर आग, लपटें
फैजाबाद : ऐसा लगा मानों एक जलते हुए लोहे के डिब्बे में कैद होकर रह गए हैं हम लोग। चारों ओर आग, लपटें..धुंआ, चीख-पुकार, बस की गैलरी में उल्टा पुल्टा पड़ा सामान और फंसे लोग। कुछ झुलस चुके थे तो कुछ आग की लपटों में समा कर काल के गाल में जा चुके थे। यह खौफनाक मंजरकशी उन लोगों की जुबानी है, जो बस में लगी आग की लपटों से बचकर बाहर आए हैं। इनके जेहन में अभी तक मौत का तांडव तारी है।
भोर का वक्त था। बस चले ज्यादा समय नहीं बीता था। आंखों में खुमारी थी। कुछ लोग झपकी ले रहे थे तो कुछ सीटों पर सो रहे थे। इसी बीच अचानक धुआं उठा, जब तक कुछ समझते मामूली सा धमाका हुआ। आग की करीब आधा फिट चौड़ी एक लंबी सी लकीर बस के पिछले हिस्से की ओर तक भागती चली गई। जब तक कोई कुछ समझता पूरी बस धू-धू कर जलने लगी। चंद पलों में ही अफरा-तफरी मच गई। बस के शीशों पर लगी रबड़ जलने लगी और शीशे जाम हो गए। सब का रुख एकलौते दरवाजे की ओर था। नतीजतन भारी भीड़ और पहले निकलने की होड़ में कुछ बचे और कुछ की जान चली गई। हादसे से बच कर लौटे शहर के चार यात्रियों के जेहन में आज भी वो खौफनाक मंजर ताजा है। बताते हुए सिहर उठते हैं। इमामबाड़ा निवासी अधेड़ परवेज आब्दी कहते हैं कि लोगों ने उन्हें इतजी जोर का धक्का दिया कि वे जमीन पर थे। अचानक आई इस आफत से बचने के लिए चंद पलों में ही लोग उन्हें रौंदते हुए गुजर रहे थे। जूता तक जल चुका था। जूता फेंका और लोगों को धक्का देते हुए बाहर आ गये। उफ ! अल्लाह ऐसे दिन किसी को न भी दिखाए। बाहर निकले परवेज ने साथियों को फोन किया। वे आए और उन्हें इलाज के लिए प्रतापगढ़ ले गए। परवेज यह कहने से गुरेज नहीं करते हैं कि सीआरपीएफ के जवान फरिश्ते बनकर आए थे, जिन्होंने अपनी जान पर खेल कर काफी लोगों को बचाया। शुक्र गुजार हूं सीआरपीएफ के उन जवानों का, जिनकी बदौलत जान बची। ¨टकू वर्मा, राजेश कुमार निषाद व नान्हूं यादव कैट¨रग का काम करने के लिए इलाहाबाद जा रहे थे। शहर के रेतिया मोहल्ले के ये तीनों लोग एक साथ थे। कहते हैं कि जब धुंआ उठा तो आगे की सीट पर बैठी एक महिला जोर से चिल्लाई थी। इसके बाद धुंआ और आग के सिवा कुछ नहीं दिखा। ऐसा लगा मानों हम एक लोहे के जलते डिब्बे में कैद होकर रह गए हैं। हर तरफ से आग की लपटें उठ रहीं थी। भागने की हर कोशिश लगभग नाकाम सी दिख रही थी। वजह थी खिड़कियां खुल नहीं रहीं थी और दरवाजे के पास इतना हुजूम था कि हर कोई पहले निकलने की कोशिश में था। कुछ तो अपना सामान भी बीच में फंसाए हुए थे। यह भी एक बड़ी वजह थी। आप को बताऊं इमरजेंसी खिड़की तक नहीं खुली। बस गर्म तवे की सी हालत में थी। खिड़की तोड़ने के लिए वार किए जा रहे थे। पर वह न तो खुली न टूटी। तीनों साथी अभी तक सहमे हैं। कहते हैं कि मदद के नाम पर अभी तक एक धेला भी नहीं मिला है। लोगों से मदद लेकर घर वापस आए और इलाज कराया।
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परिचालक का लालच, फंस जाती है यात्रियों की जान
फैजाबाद : परिवहन निगम की बसों में भारी और बड़ा सामान ले जाने के लिए बाकायदा बु¨कग की जाती है। इसकी रसीद कंडक्टर काटता है। पर 150-100 और 50 रुपये के लालच में रोडवेज कंडक्टर बड़ा और भारी सामान बसों की गैलरी और गेट तक लगा देते हैं। नतीजा ये होता है कि खास तौर पर महिलाओं और बुजुर्गों को गैलरी में रखे इस सामान को फांदने में दिक्कत आती है। कहीं बोरे लगे होते हैं, तो कहीं फूलों की बड़ी गठरियां। इन पर गलती से अगर पैर रख दिया तो चालक और परिचालक नाराज होने लगते हैं। जबकि रोडवेज प्रशासन के नियमों के तहत बसों में ले जाए जाने वाले सामान की बु¨कग होनी जरूरी है और गैलरी साफ रखने के निर्देश हैं लेकिन चंद पैसों के लालच में परिचालक और चालक सामान ले लेते हैं और पहुंचाने वाले संबंधित व्यक्ति का मोबाइल नंबर लेकर पैसा जेब में डालते हैं और चल देते हैं। यह मामूली लालच लोगों पर भारी पड़ता है। बसों की जांच के दौरान भी चे¨कग दल सिर्फ यात्रियों की संख्या गिनता है। बस में ठूंसे गए सामान की गिनती और वजह पर ध्यान नहीं देता है। इस ओर ध्यान देना जरूरी है।