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आध्यात्मिकता से अनुरंजित है रामनगरी की दीपावली

अयोध्या: भगवान राम के लंका विजय कर लौटने के उपलक्ष्य में मनाई जाने वाली दीपावली रामनगरी में आध्यात्म

By Edited By: Published: Mon, 20 Oct 2014 09:24 PM (IST)Updated: Mon, 20 Oct 2014 09:24 PM (IST)
आध्यात्मिकता से अनुरंजित है रामनगरी की दीपावली

अयोध्या: भगवान राम के लंका विजय कर लौटने के उपलक्ष्य में मनाई जाने वाली दीपावली रामनगरी में आध्यात्मिकता से अनुरंजित होती है।

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यूं तो देश के किसी अन्य शहर की तरह यहां भी पटाखे की धूम होती है और प्रकाशोत्सव से दीपावली मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती पर जब यह सब कुछ कर लोग थक चुके होते हैं, तब देर रात अंदर की दीपावली प्रकाशित होती है। साधु-संत ध्यान में डूबते हैं और पूरी-पूरी रात जागकर ईष्ट को मंत्रों से जगाते हैं। जो जिस देवता का उपासक होता है, उसके मंत्रों का अनुष्ठान करता है। रामजन्मभूमि के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास ऐसे ही साधकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे कार्तिक अमावस्या की महानिशा में रात्रि 10 बजे के करीब जब पटाखों की गूंज और दीपों की रौनक मद्धिम पडे़गी, तब खास आसन पर बैठकर हनुमान जी के मंत्र का अनुष्ठान शुरू करेंगे। प्रति वर्ष दीपावली के मौके पर वे यह अनुष्ठान कर हनुमान जी का मंत्र जाग्रत करते हैं, ताकि लोगों को बुरी नजर, प्रेत बाधा आदि से बचाया जा सके।

तंत्र साधक डॉ. रामानंद शुक्ल के अनुसार साधना की दृष्टि से वर्ष की तीन रात्रियां महत्वपूर्ण होती हैं, इनमें अघोर रात्रि और मोह रात्रि के नाम की पहली दो रात्रियां क्रमश: महाशिवरात्रि एवं होली के अवसर पर पड़ती हैं, जबकि तीसरी रात्रि सिद्ध रात्रि के नाम की दीपावली के मौके पर पड़ती है। डॉ. शुक्ल बताते हैं कि सामान्य दिनों में जिन मंत्रों के पुरश्चरण के लिए कम से कम 11 अथवा 21 दिन लग जाते हैं, इन रात्रियों में वे कुछ घंटों में ही सिद्ध हो जाते हैं। वे स्वयं इस सिद्ध रात्रि की एक-एक बूंद का उपयोग कर लेने की तैयारी में हैं। उनके अनुसार चक्रों के जागरण में भी यह पर्व अहम् है।

परंपरा की दृष्टि से भी इस पर्व का कोई सानी नहीं है। अर्चक पूरी तरह संयत हो गर्भ गृहों में आराध्य के प्रति बिल्कुल उसी भाव में सन्नद्ध होते हैं, जैसे भगवान राम लाखों वर्ष पूर्व त्रेता में नहीं बल्कि कुछ दिन पूर्व लंका विजय कर लौटे हों और जहां उन्हें युद्ध के श्रम-शौर्य के अनुरूप समुचित विश्राम की जरूरत हो और सच्चाई के समर्थक के रूप में साधक में गगनचुंबी उल्लास हो। इस भाव के बीच मंदिरों की मुंडेर और प्राचीर से लेकर गर्भगृह तक को दीपों से आच्छादित किए जाने के साथ भगवान के विग्रह को भांति-भांति के मिष्ठान्नों का भोग लगाया जाता है। हनुमानगढ़ी के अर्चक पुजारी रमेशदास के अनुसार लंका विजय के दौरान भगवान राम के अभिन्न सहयोगी के रूप में मौजूद हनुमान जी के प्रति भी इस मौके पर विशेष श्रद्धा अर्पित होती है।

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'अंदर की संपदा से साक्षात्कार का पर्व'

अयोध्या: जाने-माने चिंतक एवं प्रतिष्ठित पीठ राजगोपाल मंदिर के महंत कौशल किशोर शरण फलाहारी के अनुसार दीपावली अंदर की संपदा से साक्षात्कार का पर्व है। किन्हीं कारणों से यदि हम अंदर की संपदा से वंचित हो जाते हैं तो दीपावली उससे साक्षात्कार कराने का अवसर उपलब्ध कराती है। इसलिए जरूरी है कि बाहर का दीप जलाने के साथ अंदर का दीप जलाने को लेकर भी सजग रहें। यद्यपि उनके स्वयं के लिए दीपावली का खास मतलब नहीं है। सतत ध्यान में रहने वाले संत फलाहारी से जैसे यह इशारा मिलता है कि उनकी रोज दीपावली मनती है।


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