संरक्षित है ग्रंथ साहब की हस्तलिखित प्रति
अयोध्या: सिखों की आचार संहिता के रूप में प्रतिष्ठित गुरु ग्रंथ साहब को साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व संकलित करने का श्रेय गुरु अर्जुनदेव को जाता है और गुरु के निर्देश पर भाई गुरुदास ने लिपिबद्ध करने के बाद इसे पहली बार स्वर्ण मंदिर के दरबार साहब में प्रस्तुत किया। दरबार साहब में प्रस्तुत होने की तिथि ग्रंथ साहब के प्रकाश पर्व के तौर पर मान्य है।
बहरहाल, सिख परंपरा की व्यापकता और ग्रंथ साहब की देशना को लेकर उत्सुकता के मद्देनजर जल्दी ही इसकी और प्रतियों की जरूरत महसूस हुई। उस समय प्रिंटिंग का चलन न होने से ग्रंथ साहब की और प्रतियां तैयार करना चुनौतीपूर्ण था। इस चुनौती का सामना करने के लिए कुछ चुनिंदा श्रद्धालु आगे आए और उन्होंने बड़े यत्न से ग्रंथ साहब की हस्तलिखित प्रति तैयार की। ऐसी ही एक हस्तलिखित प्रति गुरुद्वारा ब्रह्माकुंड में संरक्षित है। यह प्रति हस्तलिखित होने के साथ अनेक विशिष्टताओं से युक्त है। इस प्रति को लिखे गए 233 वर्ष हो गए पर इसे पूरी स्पष्टता से पढ़ा जा सकता है। प्रति में उस स्याही के निर्माण की विधि का भी उल्लेख है, जिससे यह ग्रंथ लिखा गया। 18 गुणे 12 वर्ग इंच के 733 भोजपत्र पर करीने से लिपिबद्ध ग्रंथ साहब के पृष्ठ सोने के काम से अलंकृत हैं, जिनकी चमक और कलात्मकता चमत्कृत करती है। इसके लेखक के तौर पर भाई दौलत सिंह का नाम अंकित है।
यद्यपि गुरुद्वारा की भूमि नानकदेव के समय से ही विशिष्टता की वाहक है, जब हरिद्वार से जगन्नाथ पुरी जाते हुए प्रथम गुरु रामनगरी आए और रामनगरी की इसी भूमि पर धूनी रमा कर संत्संग-प्रवचन किया। सन् 1668 में अपने पूर्ववर्ती का अनुसरण करते हुए नवम् गुरु तेगबहादुर यहां आए और 48 घंटे तक अखंड तप किया। कुछ ही वर्षो बाद गुरु गोविंद सिंह सात वर्ष की अवस्था में अपने मामा कृपाल सिंह एवं गुजरीदेवी के साथ पटना से आनंदपुर जाते हुए इस स्थल को शिरोधार्य करना नहीं भूले। इसके बाद करीब एक शताब्दी तक यह स्थल विस्मृत रहा। सन् 1780 में दैवी संदेश पाकर बाबा गुलाब सिंह यहां आए और इस स्थल को उसकी गरिमा के अनुरूप विकसित किया। उस समय उन्हें इस स्थल पर वह बेल वृक्ष मिला, जिसके नीचे बैठकर प्रथम गुरु ने सत्संग किया था, नवम् गुरु की खड़ाऊं मिली, दशम् गुरु की खंजर, तीर और दस्तार चक्र मिला। बाबा गुलाब सिंह ने विरासत को बल प्रदान करने वाली इन धरोहरों को संरक्षित किया। समझा जाता है कि बाबा गुलाब सिंह के साथ दौलत सिंह भी समकालीन सिख परंपरा के प्रमुख वाहक के रूप में यहां पहुंचे होंगे। यदि बाबा ने गुरुद्वारे को स्वरूप और व्यवस्था प्रदान करने की मुहिम को आगे बढ़ाया तो दौलत सिंह ने ग्रंथ साहब की कालजयी प्रति तैयार कर स्थल को गौरवांवित किया। यह प्रति अपनी प्रामाणिकता के लिए भी प्रतिष्ठित है। गुरुद्वारा के मौजूदा मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरजीत सिंह के अनुसार गत शताब्दी में जब नांदेड़ स्थित सचखंड साहब के प्रबंधन ने पाठ के लिए ग्रंथ साहब को प्रिंट कराने की तैयारी की, तो उन्होंने दुनिया भर में जिन 18 हस्तलिखित ग्रंथ साहब को आधार बनाया, उनमें से एक यहां का भी ग्रंथ था।