सज गए मठ मंदिर, मणिपर्वत से कल शुरू होगा झूलनोत्सव
फैजाबाद : 'झूला पड़ा कदम की डारी, झूले अवध बिहारी ना' जैसे कजरी गीतों से गुलजार श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया से शुरू होने वाले झूलनोत्सव के लिए मठ-मंदिर सज-धज कर तैयार हैं। महंत जेपी दास कहते हैं कि अयोध्या के साथ ही फैजाबाद के मंदिरों में भी झूलनोत्सव मनाए जाने की परंपरा है। अयोध्या में यह उत्सव मेले के रूप में मनाया जाता है। वहां पर मठ-मंदिरों में ही नही, घर-घर में झूला डालने की परंपरा है। यह परंपरा त्रेता से ही चला आ रहा है। झूलनोत्सव की शुरूआत मणिपर्वत से ही होती है। मणिपर्वत से कई किवदंतियां जुडंी हुई हैं।
मान्यता है कि राजा जनक जब अपनी बेटी सीता के घर आए तो परंपरा के अनुसार बेटी के घर न रुक कर उन्होंने रुकने के लिए जो स्थान लिया उसके एवज में उन्होंने इतनी मणियां दे दी कि उसने पहाड़ का रूप धारण कर लिया और जिस स्थान पर वे रहते रहे उस स्थान का नाम जनकौरा पड़ा जो वर्तमान में जनौरा के नाम से जाना जाता है। एक किवदंती यह भी है कि राजा कुश ने नागराज की बेटी पर क्रोधित होकर सम्पूर्ण नागवंश को समाप्त करने की बात कही तो नागराज ने इतनी मणियां उगली कि वह पर्वत पर्वत बन गया, जो आगे चल कर मणि पर्वत के नाम से विख्यात हुआ। एक अन्य मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान राम 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे तो सीता जी ने एक दिन यूं ही कह दिया कि हरियाली युक्त पर्वतों पर विचरण की याद आ रही है उसी समय भगवान राम ने गरुण से वैसे ही पर्वत के निर्माण का आग्रह किया और गरुण ने मणियों से युक्त पर्वत का निर्माण किया। सीताजी यहीं पर क्रीड़ा करने आती रहीं। यहीं पर सावन में उनके लिए झूला पड़ता रहा। यही वजह है कि झूलनोत्सव मणिपर्वत से ही शुरू होता है। श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को अयोध्या के मंदिरों से भगवान राम व माता सीता के विग्रह मणिपर्वत लाए जाते हैं और वहां पर उन्हें झूलों में झुलाया जाता है। श्रावण शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से मंदिरों में झूला देखने के लिए मेलार्थियों की भीड़ उमड़ती है। लगभग एक पखवारे तक चलने वाले झूलनोत्सव को झूला मेला नाम दे दिया गया है।