रंग महल में झूलनोत्सव शबाब पर
फैजाबाद : रामनगरी के अन्य मंदिर झूलनोत्सव के लिए भले ही सावन शुक्ल तृतीया यानी 30 जुलाई की बाट जोह रहे हों पर अधिग्रहीत परिसर से सटी प्रतिष्ठित पीठ रंग महल में यह उत्सव उफान पर है। परंपरा के अनुरूप आषाढ़ पूर्णिमा को ही रंग महल में हिंडोरा पड़ गया, वह भी एक नहीं चार। एक पर यदि भगवान राम और भगवती सीता के विग्रह को प्रतिष्ठित किया गया तो अन्य पर भरत-मांडवी, लक्ष्मण-उर्मिला एवं शत्रुघ्न-श्रुतिकीर्ति का विग्रह अधिष्ठित किया गया।
मंदिर के मनोहारी जगमोहन में पुरातात्विक महत्व के साबित हो रहे दो सौ वर्ष पूर्व बने चार हिंडोरों पर सजा दरबार सांस्कृतिक भव्यता की नजीर साबित होता है। सायं सजने वाली संगीत की महफिल भव्यता में चार चांद लगाती है। सधे कलाकार जब आचार्य प्रणीत पदों का आलाप लेते हैं, तो श्रोता थम कर रह जाते हैं और इसके निहितार्थ साधक को साध्य से एकाकार करता है। इस महफिल की अपनी मर्यादा है। ऐसा नहीं कि इसमें मनोरंजन के उद्देश्य से चाहे जो कुछ गा-बजा लिया जाय, अपितु प्रस्तुतियों की आचार संहिता है। पीठाधिपति महंत रामशरण दास के अनुसार महफिल की शुरुआत मंदिर के पूर्व आचार्य महंत सरयू शरण की इस पंक्ति से होती है- प्यारी संग झूलत प्रीतम प्यारे, काली नीली घटा घिर आई, बरसत बादर कारे, सरयू सखी के प्राण जीवन धन झूलत प्रीतम प्यारे।
भक्ति और अध्यात्म में पगी ऐसी सारगर्भित पंक्तियों को स्वर देने का काम अमूमन स्थापित संगीतज्ञ शीतलाप्रसाद मिश्र एवं उनके साथी करते हैं। हालांकि सावन पूर्णमासी तक प्रस्तावित झूलनोत्सव के शिखर का स्पर्श अभी बाकी है और शिखर के दिनों में कई और नामचीन कलाकार रंग महल की झूलनोत्सव की महफिल को स्वर देते हैं। मंदिर की परंपरा के सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ प्राय: झूलनोत्सव के सहचर बनने वाले हनुमानगढ़ी के पुजारी रमेश दास अपने अनुभव को अप्रतिम करार देते हैं। न केवल उत्सव की प्रस्तुति में संजीदगी-समर्पण बल्कि रंग महल के मनोरम स्थापत्य की ओर इशारा कर वे कहते हैं, कभी-कभी तो यह प्रतीत होता है कि चराचर का नायक सही में झूलने आ गया हो।