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भगवा दुर्ग में क्षत्रपों का शीतयुद्ध

By Edited By: Published: Fri, 18 Apr 2014 12:10 AM (IST)Updated: Fri, 18 Apr 2014 12:10 AM (IST)
भगवा दुर्ग में क्षत्रपों का शीतयुद्ध

फैजाबाद : ढाई दशक पहले राममंदिर आंदोलन के चलते भगवा दुर्ग में तब्दील फैजाबाद संसदीय सीट पर उम्मीदवारी को लेकर छिड़ी अंतर्कलह भाजपाई रणनीतिकारों को हलकान किए हुए है। पार्टी क्षत्रपों का शीतयुद्ध मिशन-2014 की डगर को पथरीली बना रहा है, हालांकि उसके प्रतिद्वंद्वी दलों को भी क्षेत्रीय सूरमाओं की महत्वाकांक्षा का दंश झेलना पड़ रहा है, नतीजतन भितरघात से चुनाव परिणाम प्रभावित होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

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1991 में चले राममंदिर आंदोलन की आंधी में विरोधी दलों के तंबू-कनात उड़ गए। अवध क्षेत्र भाजपा की सियायत का गढ़ बन गया और उसकी धुरी बनी अयोध्या (फैजाबाद संसदीय सीट)। देश में नरेंद्र मोदी के पक्ष में आंधी चलने का दावा कर रही भाजपा के लिए यह सीट साख का सवाल बनी हुई है। गुजरात के विकास मॉडल का सब्जबाग दिखा मिशन 2014 फतह करने में जुटी भाजपा को आंतरिक सिर फुटौव्वल से दोचार होना पड़ रहा है। यहां तीन बार सांसद रहे विनय कटियार की पार्टी उम्मीदवार लल्लू सिंह से अदावत किसी से छिपी नहीं है तो 'टिकट के दावेदार' बन कर उभरे रुदौली से विधायक रामचंद्र यादव की भी नाराजगी कम नहीं हो सकी है। वहीं पड़ोस की बस्ती अथवा अंबेडकरनगर संसदीय सीट से टिकट पाने से वंचित रहे पूर्व सांसद एवं रामजन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य रामविलास दास वेदांती खुलकर बगावत का बिगुल फूंक चुके हैं। ऐसा नहीं है कि पार्टी नेतृत्व भगवा कुनबे के इस बिखराव से वाकिफ नहीं है। जिला नेतृत्व के अवगत कराने के बाद इसी गुटबाजी पर लगाम लगाने के लिए भाजपा के प्रदेश महासचिव राकेश जैन यहां का दौरा कर असंतुष्ट बताए जा रहे नेताओं के साथ बैठक कर चुके हैं, पर इस प्रयास का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। कटियार व यादव गुट से चल रही सियासी आंखमिचौली भाजपा की उम्मीदों को जमींदोज कर सकती है।

गुटबाजी का रोग कांग्रेस में भी काफी पुराना रहा है, हालांकि जिन लोगों ने बगावत की, उनमें कोई बड़ा नाम तो नहीं है, पर उससे स्थानीय स्तर पर नुकसान पहुंचने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। यही हाल सपा व बसपा का है। सपा ने यहां से पहले घोषित उम्मीदवार तिलकराम वर्मा का टिकट काटकर विधायक मित्रसेन यादव को मैदान में उतारा है तो बसपा ने भी पहले घोषित उम्मीदवार हरगोविंद सिंह का टिकट काट कर पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बब्लू पर भरोसा जताया है। यही कारण है कि सपा व बसपा को भी अपने क्षत्रपों के बीच खींचतान से नुकसान की आशंका सता रही है।

नई नहीं है कटियार व लल्लू की गुटबाजी - 1991 में राम मंदिर आंदोलन के फायरब्रांड नेता विनय कटियार सांसद चुने गए और लल्लू सिंह विधायक। कटियार ने 1996 में विजय पताका फहराई और 98 की हार के बाद 99 के चुनाव में फिर जीत दर्ज कर संसद की राह पकड़ी। शुरुआती दौर को छोड़कर अंदरखाने कटियार व लल्लू खेमे में बंटी भाजपा ऊपरी तौर पर तो एक दिखती रही पर 2004 के लोकसभा चुनाव में जैसे ही भाजपा ने कटियार को हटाकर यहां से लल्लू सिंह को उम्मीदवार बनाया, दोनों दिग्गजों के बीच खींचतान खुलकर सतह पर आ गई। कटियार खेमे के अपेक्षित सहयोग से वंचित रहे लल्लू सिंह को बसपा के मित्रसेन यादव से हार का सामना करना पड़ा। यही गुटबाजी उसे 2009 के चुनाव में भी ले डूबी थी और तीसरे स्थान पर खिसकना पड़ा। इसका फायदा उठा कांग्रेस के डॉ. निर्मल खत्री सांसद चुने जाने में कामयाब रहे।

2009 के लोकसभा चुनाव में प्रमुख दलों को मिले मत

दल उम्मीदवार मत

कांग्रेस डॉ. निर्मल खत्री 211543

सपा मित्रसेन यादव 157315

भाजपा लल्लू सिंह 151558

बसपा बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र 135709


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