टूटकर फर्ज शीशा निभाता है
फैजाबाद : टूटकर फर्ज शीशा निभाता है/ टुकड़े-टुकड़े में ही सही पर चेहरा तो दिखाता है। मोक्षदायिनी नगरी के श्मशान घाट पर यह पंक्ति सटीक बैठती है। यद्यपि श्मशान घाट का अपना वजूद विखंडित है पर मोक्ष की आकांक्षा में यहां प्रतिदिन दूर-दराज के क्षेत्रों तक से आने वाले सैकड़ों शवों का अंतिम संस्कार होता है।
यह अलग विषय है कि अंतिम यात्रा की राह में दुश्वारियों की कोई सीमा नहीं है। अव्वल तो यह कि अयोध्या में श्मशान घाट का कोई स्थाई ठौर नहीं है। सरयू के बहाव के साथ श्मशान घाट का वजूद चिह्नित होता है। चिताएं कभी चौधरी चरण सिंह घाट पर, कभी रेलवे पुल के नीचे दाएं-बाएं और प्रशासन यदि गाफिल पड़ा तो स्नान घाट के करीब ही सजती रहती हैं। इस चक्रव्यूह से स्थानीय शव यात्री तो किसी तरह पार पा लेते हैं मगर वे उलझकर रह जाते हैं, जो अपने मृत परिजन का अंतिम संस्कार मोक्षदायिनी नगरी में करने की आकांक्षा से दूर-दराज इलाकों से आए होते हैं।
फिलहाल वैशाख के महीने में सरयू की सिमटी धारा के बीच अंतिम संस्कार का बाजार रेलवे पुल के नीचे लगा नजर आता है। प्रतीत होता है कि श्मशान घाट का ठौर मुकम्मल हो गया है। हालांकि यहां तक पहुंचना आसान नहीं है। वैसे तो मुख्य स्नान घाट से ही जलती चिताएं नजर आती हैं और लगता है कि श्मशान घाट तक पहुंचना टेढ़ी खीर नहीं है पर तपती रेत में किलो-दो किलोमीटर का सफर कितना आसान है, इसे उस पर से गुजरने वाला ही बता सकता है। ऊपर से यदि शव और उसके अंतिम संस्कार का साजो-सामान ले जाने का दायित्व हो तो यह सफर और भी कठिन हो जाता है। आवश्यकता आविष्कार की जननी है, इस सूत्र पर अमल करते हुए रेलवे पुल के नीचे आबाद श्मशान घाट तक पहुंचने का रास्ता ईजाद कर लिया गया है। यद्यपि यह रास्ता कम जोखिम भरा नहीं है। फटिक शिला आश्रम से होकर चौधरी चरण सिंह घाट के बगल तक तो किसी तरह पहुंचा जा सकता है मगर इसके आगे राम की पैड़ी से अवमुक्त होने वाले जल प्रवाह को पार करना होता है। इस प्रवाह को पार करने के लिए कोई स्थाई प्रबंध नहीं है पर श्मशान घाट को आबाद रखने का यत्न करने वाले महापात्रों एवं लकड़ी व अंतिम संस्कार की अन्य सामग्री का कारोबार करने वालों ने सीमेंट की मोटी पाइप डालकर आवागमन का कामचलाऊ साधन विकसित करने की कोशिश की है। इस तथाकथित पुल से न केवल शवयात्री पैदल गुजरते हैं बल्कि बाइक, कार एवं बसें तक श्मशान घाट तक पहुंचने लगी हैं। इस प्रयास से भले ही तात्कालिक सुविधा मुहैया हुई हो पर दुर्घटना की आशंका भी प्रबल हो रही है। वशिष्ठ भवन धर्मार्थ सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. राघवेशदास के अनुसार यह परिदृश्य शर्मनाक है। उनकी मानें तो अयोध्या में अन्य सुविधाओं की अनदेखी स्वीकृत हो सकती है पर श्मशान घाट की इस कदर उपेक्षा बर्दाश्त से बाहर है। फटिक शिला आश्रम के करीब मनकापुर के युवा व्यापारी जियालाल खड़ी दोपहरी में श्मशान घाट का रास्ता खोजने की कोशिश में बदहवास नजर आते हैं। दो-तीन लोगों से पूछने पर उन्हें अपने नाना के अंतिम संस्कार में शामिल होने का रास्ता तो मिल जाता है पर तब तक वे निढाल हो चुके होते हैं।
ठौर की तलाश में तय किया लंबा सफर
अयोध्या : गत दो दशक के दौरान श्मशान घाट ने स्थायी ठौर की तलाश में लंबा सफर तय किया है। हालांकि जब तक संत तुलसीदास घाट नहीं बना था, तब तक श्मशान घाट का स्वरूप कच्चे स्नान घाट के कुछ फासले पर मुस्तकिल था। घाटों को पक्का बनाए जाने का दौर क्या शुरू हुआ, श्मशान घाट को यायावरी होकर रह जाना पड़ा। पहले वह फटिक शिला आश्रम के करीब स्थानांतरित हुआ। आश्रम प्रबंधन ने इस जमीन पर अपना दावा जताया और श्मशान घाट कभी रामनगरी के सर्वाधिक महिमा वाले रामघाट का अतिक्रमण करते हुए वहां स्थापित हो गया। हालांकि रेत के बियावान में सरयू के दूर होते जाने के कारण श्मशान घाट यहां भी निरापद नहीं रह सका। इस बीच सहारा इंडिया परिवार ने नगरी की महिमा को ध्यान में रखकर बैकुंठ धाम के रूप में सुविधायुक्त श्मशान घाट विकसित किया पर सरयू के प्रवाह की दूरी की वजह से यह निष्प्रयोज्य साबित होकर रह गया।
किसी दल अथवा दावेदार को नहीं सरोकार
अयोध्या : लोक सभा चुनाव पूरी रौ में है पर श्मशान घाट जैसी बुनियादी जरूरत की किसी भी दावेदार अथवा दल को चिंता नहीं है। हालांकि इलाकाई विधायक एवं प्रदेश के मनोरंजन कर राज्य मंत्री तेजनारायण पांडेय पवन बेहतर श्मशान घाट को लेकर प्रतिबद्धता जताते हैं और कहते हैं कि यदि लोग श्मशान घाट के लिए कोई स्थाई जगह सुनिश्चित करें तो उसके विकास के लिए हर संभव सुविधा मुहैया कराई जाएगी।