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आधुनिकता की चकाचौंध में खो गई मिट्टी की कारीगरी

By Edited By: Published: Thu, 31 Oct 2013 09:59 PM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2013 09:59 PM (IST)
आधुनिकता की चकाचौंध में खो गई मिट्टी की कारीगरी

फैजाबाद : कुम्हारी कला पर आधुनिकता की दखल कुम्हारों के लिए चिंता का सबब बन गयी है। दीपावली का त्योहार नजदीक आते देख इस कला से जुड़े लोगों में उदासी व्याप्त है। कुम्हारों का पुश्तैनी धंधा आधुनिकता की चकाचौंध में छिन्न-भिन्न होकर रह गया है। प्रजापति समाज के चेहरे की रौनक अब पहले जैसी नहीं रही। नतीजन दो जून की रोटी नसीब होना अब मुश्किल हो गया। रोजी-रोटी के लिए परदेश पलायन को विवश हैं।

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विकासखंड मयाबाजार अंतर्गत ग्रामीणांचलों में रहने वाले कुम्हारी कला से जुड़े लोगों को आधुनिकता की चकाचौंध ने झकझोर कर रख दिया है। अपने पारंपरिक हुनर की दुर्दशा व प्रशासनिक उदासीनता ने प्रजापति समाज को हिला दिया, ऐसी स्थिति पूर्व में ऐसा कभी नहीं थी। धार्मिक मान्यताओं व सामाजिक व्यवस्थाओं में उन्हें खासा तवज्जो मिला करता था। यही कारण है कि विवाह संस्कार से लेकर धार्मिक आयोजन में कुम्हार के चाक से बने बर्तन जरूर प्रयोग किए जाते थे। इससे उन्हें मेहनताना तो मिलता ही था, साथ ही शुभ कार्यो में भागीदारी के लिए अलग से नजराना (नेग) भी मिलता था। स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से मिट्टी के बर्तन काफी अच्छे माने जाते हैं। आजादी के पूर्व सामंती व्यवस्था में सामंतों व अन्य शासकीय निकायों द्वारा इस समाज को मदद दिए जाने की व्यवस्था थी। उन्हें लकड़ी शासकीय इमदाद हासिल हो जाती थी परंतु अब स्थिति बिल्कुल विपरीत हो गई है। मिट्टी के बर्तनों की जगह प्लास्टिक व फाइबर व चाइनीज झालरों ने ले लिया है। जो न कि पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी नुकसानदायक है। वर्तमान में मिट्टी के बने बर्तनों का उपयोग बिल्कुल न के बराबर हो गया है। कुम्हारी कला को बढ़ावा देने के लिए कोई सरकारी घोषणाएं भी लागू नहीं हो पा रही है। जिससे इस कला के जुड़े लोगों का आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है। इसके बावजूद कुम्हारों के चाक दीपावली पर्व को देखते हुए तेजी से घूम रहे हैं। पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के कुल्हड़ प्रेम से एक बार समाज की उम्मीद तो बांधी लेकिन अब वह नाउम्मीदी में तब्दील हो गई है।

क्या कहते हैं कुम्हार

महबूबगंज : क्षेत्र के पौषरा, लालपुर, अल्पी का पूरा, भिटौरा, बंदनपुर, गौहनिया, अंकारीपुर, रामापुर, समदा, बेहटा, दलपतपुर, त्रिलोकपुर आदि गांवों में प्रजापति समाज के लोग निवास करते हैं। मयाबाजार के हजारों कुम्हारों का यही हाल है। पौषरा निवासी रामजतन प्रजापति ने बताया कि मेरे बाद इस पुश्तैनी धंधे की हिफाजत कौन करेगा? क्योंकि आने वाली पीढ़ी अब दूसरे व्यवसाय को अपनाने पर विवश है या परदेश पलायन कर रही है। वहीं अंकारीपुर निवासी रामसूरत प्रजापति ने कहा कि कुम्हारी कला के सिमटने का कारण आधुनिक बाजार हैं।

सरकारों ने किया सौतेला व्यवहार : डॉ. प्रजापति

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महबूबगंज : प्रजापति महासभा के जिलाध्यक्ष डीएस प्रजापति कहते हैं कि आजादी के बाद भी सरकारों ने इस समाज के साथ सौतेलपन का रुख अख्तियार किया। लगभग हर चुनाव में लुभावने वादे तो खूब किए गए लेकिन जमीनी तौर पर समाज के हित के लिए किसी भी दल ने कुछ नहीं किया। डॉ. प्रजापति ने समाज को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने की मांग की है।

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