इस चुनाव में बदली बीहड़ की फिजा
संवादसूत्र, बकेवर : बीहड़ क्षेत्र में कई दशक तक डाकुओं का आतंक रहा। कोई भी चुनाव हों, हर बार बीहड़ में
संवादसूत्र, बकेवर : बीहड़ क्षेत्र में कई दशक तक डाकुओं का आतंक रहा। कोई भी चुनाव हों, हर बार बीहड़ में डाकुओं का फतवा वहां के बा¨शदों पर हावी रहता था। कड़वा सच यह भी है कि कई बड़े गिरोह को बीहड़ में सजातीय लोगों का संरक्षण भी प्राप्त था। यही वजह रही कि सरगना किसी भी प्रत्याशी के पक्ष में बीहड़ के बा¨शदों का वोट डलवाने का माद्दा रखते थे। इस कारण जीत के समीकरण बैठाने के लिए बड़े दलों के प्रत्याशी भी दस्यु गिरोहों का सहारा लेने का मौका नहीं छोड़ते थे। करीब एक दशक की अवधि में अब फिजा पूरी तरह से बदली हुई है, बीहड़ में कोई गिरोह अब सक्रिय नहीं है।
चंबल यमुना पट्टी में एक समय रामआसरे उर्फ फक्कड़, पहलवान उर्फ सलीम गुर्जर, निर्भय ¨सह गुर्जर, जगजीवन परिहार, अर¨वद रामवीर गुर्जर, रामवीर गुर्जर, चंदन यादव, मंगली केवट जैसे बड़े गिरोह सक्रिय थे। विनायकपुरा दिलीप नगर से लेकर ¨चडौली नवादा खुर्द कलां के बीहड़ गांवों तक अर¨वद रामवीर व रज्जन गुर्जर का दबदबा था। कानपुर देहात के यमुना पट्टी गांवों से लेकर मध्य प्रदेश के मछंड के बीहड़ी गांवों में निर्भर गुर्जर व राम आसरे तिवारी का आतंक था। वहीं राम आसरे फक्कड़ का तो दूसरे राज्यों में भी आतंक था। गांवों की पंचायतों में इन डकैतों का ही दखल रहता था। डकैतों की बात मानना ग्रामीणों की मजबूरी थी क्योंकि मुखबिरी के संदेह में ही कई बार दस्यु गिरोह लोगों को मौत के घाट उतार देते थे। सहसों थाना क्षेत्र के पसिया चन्द्र हंसपुरा ¨सडौस सहित कुछ गांवों के अलावा बिठौली व भरेह थाना क्षेत्रों के अधिकांश गांवों के वोटर तो डाकुओं की सक्रियता के वक्त लोकतंत्र के समर में अपनी स्वेच्छा वोट डाल ही नहीं पाए।
हालांकि वर्ष 2008 के बाद तस्वीर बदलने लगी। सर्विलांस की मदद से पुलिस दस्यु गिरोह की लोकेशन ट्रेस करने में कामयाब होने लगी और एक के बाद एक डकैत गिरोहों का खात्मा हो गया। इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान पुलिस के सामने दस्यु समस्या नहीं है। किसी नए गिरोह के सक्रिय होने की सूचना भी फिलहाल यमुना पट्टी व चंबल पट्टी क्षेत्र के बीहड़ इलाके में नहीं है। इस संबंध में क्षेत्राधिकारी भरथना शिवराज ने बताया कि अब यमुना पट्टी के बीहड़ में किसी भी प्रकार की दस्यु समस्या और मतदाताओं पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं है। लोग लोकतंत्र के इस महापर्व में पूरी उत्साह से हिस्सेदारी कर रहे हैं फिर भी पुलिस संवेदनशील गांवों पर अपनी नजरें गढ़ाए हैं।