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सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में घट रही है छात्र संख्या

दैनिक जागरण विशेष का लोगो लगेगा। विजय प्रताप ¨सह चौहान, इटावा: शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने व अधिक

By Edited By: Published: Fri, 29 May 2015 01:15 AM (IST)Updated: Fri, 29 May 2015 01:15 AM (IST)
सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में घट रही है छात्र संख्या

दैनिक जागरण विशेष का लोगो लगेगा।

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विजय प्रताप ¨सह चौहान, इटावा: शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने व अधिक से अधिक बच्चों को विद्यालयों में पंजीकृत कराने के सरकारी प्रयास असरकारी साबित नहीं हो रहे हैं। संभवत: यही कारण है कि सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में पंजीकृत छात्र संख्या में प्रति वर्ष कमी आ रही है। पिछले चार वर्षों के शिक्षा विभाग के आंकड़े तो कम से कम यही प्रदर्शित कर रहे हैं। हालांकि अपवाद के रूप में वर्ष 2014 की इंटरमीडिएट की परीक्षा सामने आती है जिसमें लगभग चार हजार विद्यार्थी बढ़े। इस बढ़त के पीछे इंटर पास करने से कहीं ज्यादा सरकार द्वारा बांटे जाने वाले लैपटॉप की चाह परिलक्षित हुई। सरकारी विद्यालयों में आधारभूत आवश्यकताओं की कमी तो है ही, शिक्षा का स्तर और शिक्षण का तरीका वर्तमान जरूरतों के अनुरूप न होने से भी छात्रों व अभिभावकों का रुझान इनसे दूर हो रहा है। ऐसे में प्राइवेट स्कूलों का धंधा भी खूब चल निकला है और वे अत्याधुनिक जरूरतों के अनुसार पढ़ाई भी मुहैया करा रहे हैं। वर्ष 2012 की हाई स्कूल परीक्षा में कुल 31966 विद्यार्थियों का पंजीकरण हुआ था और अगले वर्ष 2013 में होने वाली परीक्षा के लिए 29633 छात्र पंजीकृत थे। वर्ष 2014 में परीक्षा देने के लिए 29480 छात्रों ने फार्म भरे। वर्ष 2015 की हाई स्कूल की परीक्षा में बैठने के लिए 28204 विद्यार्थी पंजीकृत थे। इस प्रकार वर्ष 2013 में 2333, वर्ष 2014 में 153 तथा वर्ष 2015 में 1276 बच्चों ने सरकारी विद्यालयों से हाई स्कूल करना जरूरी नहीं समझा।

इन विद्यालयों में इंटरमीडिएट का हाल देखें तो वर्ष 2012 की परीक्षा हेतु 20189, वर्ष 2013 की परीक्षा हेतु 20108, वर्ष 2014 की परीक्षा हेतु 23888 तथा वर्ष 2015 में हुई इंटरमीडिएट की परीक्षा हेतु 23918 विद्यार्थी पंजीकृत थे। इस प्रकार वर्ष 2012 के सापेक्ष 2013 में 81 बच्चों ने सरकारी विद्यालय से इंटर नहीं किया। उसके अगले वर्ष 2014 में हालांकि 3780 बच्चों की वृद्धि हुई। वर्ष 2014 के सापेक्ष वर्ष 2015 में इंटर करने के लिए मात्र 30 बच्चे ही बढ़े।

क्या कहते हैं प्रधानाचार्य

टाई-बेल्ट, रंग बिरंगी यूनीफॉर्म, बस आदि की चकाचौंध के आकर्षण में अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल भेजने को प्रमुखता दे रहे हैं। जिनके पास आर्थिक सक्षमता है वे अपने खर्च कम करके भी सीबीएसई विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाना चाह रहे हैं। सरकारी विद्यालयों में ¨प्रसिपल का शिक्षकों के ऊपर व्यावहारिक रूप से उतना दबाव नहीं होता। यह सही है कि बच्चों की संख्या आशातीत रूप से नहीं बढ़ रही है लेकिन मेरा मानना है कि जनपद के छात्र वापस एक बार फिर से सरकारी विद्यालयों का रुख करेंगे।

सियाराम यादव, प्रधानाचार्य जनता इंटर कॉलेज, अशोक नगर

अभिभावकों को चाहिए कि सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों पर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने व छात्र में अध्ययन के प्रति रुचि पैदा करने के लिए दबाव बनाएं। सुविधाओं का अभाव भी एक कारण है जिससे बच्चों व अभिभावकों का रुझान सरकारी या सहायता प्राप्त विद्यालयों से कम हो रहा है। सच्चाई यह है कि सरकारी विद्यालयों के शिक्षक कहीं ज्यादा काबिल हैं।

राजेंद्र ¨सह भोले, परीक्षा प्रभारी, केके इंटर कॉलेज

छात्रों व अभिभावकों का आकर्षण सीबीएसई बोर्ड के स्कूलों की तरफ ज्यादा होने के कारण हो सकता है कि छात्र संख्या में कमी आ रही हो। हालांकि जीआईसी में कमी तो विशेष नहीं देखी जा रही है, लेकिन यह भी सही है कि जनपद की बढ़ती छात्र संख्या के मुताबिक प्रवेश नहीं हो रहे हैं। समाज को यह समझना चाहिए कि यूपी बोर्ड से पढ़कर बच्चों ने अच्छे मुकाम हासिल किए हैं।

कमलेश पांडे, प्रधानाचार्य जीआईसी इटावा

सीबीएसई बोर्ड में मार्किंग सिस्टम अलग है जिससे बच्चों के अंकों का प्रतिशत अच्छा बन जाता है। यह एक प्रमुख वजह है कि बच्चों व अभिभावकों में सीबीएसई बोर्ड से पढ़ने का चलन सा बन गया है। इसके साथ ही यह भी सही है कि यूपी बोर्ड की गुणवत्ता आज भी ज्यादा है। यूपी बोर्ड का 60 प्रतिशत अंकों वाला छात्र सीबीएसई के 85 प्रतिशत वाले छात्र से कहीं अधिक होशियार होगा।

राजेंद्र प्रसाद यादव, प्रधानाचार्य ¨हदू विद्यालय इंटर कॉलेज जसवंतनगर


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