डीएनए की तरह नक्षत्रों से भी संतान की पहचान
निज प्रतिनिधि, सोरों: राष्ट्रीय ज्योतिष महासम्मेलन में एक नई बात सामने आई। ज्योतिषाचार्यो का कहना है कि सोरों की गंगा धारा पितृों की मुक्ति के लिए श्रेष्ठ है। यहां तर्पण से पितृों की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। यहां अस्थियां विसर्जन, पिंड दान और तृपण से पितृों को जल, थल और अंतरिक्ष तीनों लोक से मुक्ति मिल जाता है।
ज्योतिषाचार्यो के दो दिवसीय महासम्मेलन में वक्ताओं का कहना था कि ज्योतिष एक प्राचीन विज्ञान है। ज्योतिष ज्ञान और विज्ञान में सिर्फ एक अंतर है। विज्ञान में खोज भौतिक संसाधनों से होती है जबकि ज्योतिष में नक्षत्रीय गणना से।
तीर्थ नगरी सोरों में बुधवार को दो दिवसीय अखिल भारतीय ज्योतिष महासम्मेलन शुरू हुआ। भुसावल महाराष्ट्र से आए पं. लक्ष्मी शकर शुक्ल ने कहा कि पितृ तर्पण के लिए गया, बनारस, बद्रीधाम से बढ़कर सोरों शूकर क्षेत्र है। वराह पुराण में इस बात का वर्णन है कि शूकर क्षेत्र पितृों की मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ है। देश में केवल यही स्थान है जहां अस्थियां मात्र 72 घंटे में विलीन (घुल) हो जाती है।
मुज्जफरपुर बिहार से आए पं. दिलीप ओझा ने जीवन ज्योतिष विषय पर विचार व्यक्त किये। पं. धर्मनारायण ने कहा कि जिस तरह विज्ञान में डीएनए जांच है। उसी तरह ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों से संतान की पहचान होती है। उत्तराखण्ड से आए कमल किशोर ने कहा कि कालसर्प दोष भी है और योग भी। किसी जातक की कुण्डली में बारहवें भाग में राहु होता है तो जातक को बड़ा खतरा रहता है। रायगढ़ से आए नन्दकिशोर सक्सेना ने तंत्र विद्या तो रामबाबू जोशी ने हस्तरेखा विज्ञान पर प्रकाश डाला। ज्येतिषाचार्य सुधाशु निर्भय ने कहा कि विज्ञान खोज है, तो ज्योतिष चमत्कार है। उन्होंने सारे विज्ञानों की जननी महाविज्ञान ज्योतिष को बताया। डा. रामप्रकाश पाठक ने भी इस पर विचार रखे।
इससे पूर्व संत तुलसीदास इण्टर कालेज में आर्यावर्तीय ज्योतिर्विज्ञान परिषद के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय महासम्मेलन का शुभारंभ पालिकाध्यक्ष अध्यक्ष श्रीमती अर्चना यादव ने किया। महासम्मेलन में प्रमुख रूप से डा. सिद्धेश्वरी देव, नारायण उपाध्याय, सत्यप्रकाश अबोध महाराज, धीरेन्द्र पंत, गोपाल राजू, सत्यनारायण शर्मा सरस, आनंद अयाचक, कालिका पीठ के मंहत ज्योतिवाले बाबा आदि उपस्थित थे। संचालन पं. अजय कुमार तैलगन ने किया।
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