विश्वास के कारोबार पर मंडी में बढ़ रही रौनक
जागरण संवाददाता, एटा : नोटबंदी के बाद गड़बड़ाए खाद्यान मंडी के कारोबार को पटरी पर लाने की कवायद कारोबा
जागरण संवाददाता, एटा : नोटबंदी के बाद गड़बड़ाए खाद्यान मंडी के कारोबार को पटरी पर लाने की कवायद कारोबारियों ने तेज कर दी है। पिछले दिनों एक सप्ताह से ज्यादा मंडी बंदी के बाद अब जब मंडी खुली है तो किसान अपनी जरूरतों के लिए अनाज की बिकवाली को पहुंचने लगे हैं। हालांकि बिकने वाले अनाज का उन्हें पूरा भुगतान तो नहीं मिल रहा लेकिन अब यहां विश्वास के कारोबार से किसानों की रौनक बढ़ रही है।
पिछले महीने ही किसानों के घर धान की फसल पहुंची और उन्हें इस फसल से तमाम काम निपटने की उम्मीद थी। इस मध्य नोटबंदी ने उनकी पूरी रणनीति को ही गड़बड़ा दिया। गल्ला कारोबारियों के पास करेंसी का टोटा हुआ और अनाज की खरीद-फरोख्त बंद होने के साथ ही मंडी में भी ताले पड़ गए। चूंकि किसानों को नई फसलें बोने और परिवार में शादी-समारोहों और अन्य जरूरतों के लिए धन की जरूरत थी, लेकिन अनाज की बिकवाली न होने और भुगतान की समस्या ने उनके सामने तमाम परेशानियां खड़ी कर दीं। हालांकि अभी भी गल्ला कारोबारियों के सामने नकद भुगतान के लिए दिक्कतें ही हैं। अभी भी सप्ताह भर में सिर्फ 24 हजार रुपये बैंक से करेंसी मिलने के नियम से उनके हाथ बंधे हुए हैं। इसके बावजूद किसानों की समस्याओं के ²ष्टिगत 30 नवंबर से मंडी खुल गई।
शुरुआत के दो दिन तो किसानों को मंडी खुलने की जानकारी भी न हुई लेकिन अब जब जानकारी हुई है तो जरूरतमंद किसान अपना अनाज लेकर आढ़तियों के यहां पहुंच रहे हैं। अनाज की बिकवाली कुछ नकद भुगतान तो ज्यादातर विश्वास पर ही हो रही है। अनाज खरीदने वाले कारोबारी अनाज के मूल्य के सापेक्ष 10 फीसद या फिर किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें भुगतान उपलब्ध करा रहे हैं। शेष भुगतान में से हर सप्ताह 10 से 20 फीसदी भुगतान करने की बात कर रहे हैं। इन तमाम शर्तो पर भी जरूरतमंद किसान आढ़तियों को अनाज बेच रहा है। अनाज के मूल्यों को लेकर चली आ रही अस्थिरता भी खत्म हो रही है। उधर माल आने और भुगतान करने के लिए आढ़तिया भी पुराने माल को बाहर भेजकर करेंसी की व्यवस्था करने में जुटे हैं। व्यापारी दिनेश चंद्र ने बताया कि किसान भी आढ़तियों की समस्या समझ रहे हैं, जितना संभव हो रहा है उतना भुगतान कर अनाज खरीदा जा रहा है। मनोज गुप्ता ने बताया कि फिलहाल तो भरोसे का ही कारोबार है।
-हो चुका लाखों का नुकसान
मंडी कारोबार नोटबंदी से ठप रहने के कारण कारोबारियों का नुकसान तो हुआ ही। वहीं मंडी राजस्व को भी अब तक बड़ी चपत लगी है। नोटबंदी के बाद 75 से 80 लाख रुपये राजस्व का घाटा हुआ है। मंडी निरीक्षक सुरेशचंद्र के अनुसार अभी 5 फीसद भी राजस्व औसतन नहीं मिल पा रहा।
-कहते हैं किसान
नगला भोज के पोखपाल ने बताया कि उन्होंने 30 हजार रुपये के धान की बिकवाली की। तब कहीं 5 हजार रुपये नकद मिले हैं। समस्या तो नहीं निपटी लेकिन मंडी खुलने से कुछ राहत मिल गई। छछैना के सुधीर ने बताया कि फसल हाथ होकर भी पैसा हाथ न आने से उधारी में फसलों की बुवाई के लिए सब कुछ महंगा खरीदना पड़ा है। यह सब आम आदमी के लिए तो घाटा ही है।