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दो साल में नहीं हुई एक भी डिलीवरी

जागरण संवाददाता, एटा: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम की दुर्गति देखनी है तो यहां

By Edited By: Published: Wed, 24 Aug 2016 10:23 PM (IST)Updated: Wed, 24 Aug 2016 10:23 PM (IST)
दो साल में नहीं हुई एक भी डिलीवरी

जागरण संवाददाता, एटा: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम की दुर्गति देखनी है तो यहां आइए। नगला पोता में शहरी स्वास्थ्य केंद्र को बने करीब दो साल हो गए हैं, लेकिन अब तक एक भी डिलीवरी नहीं हुई है। यह हाल तब है, जबकि सरकार और महकमा संस्थागत प्रसव पर विशेष जोर देते हैं। यही नहीं, यहां डॉक्टर की सीट पर स्टाफ नर्स मरीजों का परीक्षण करती हैं और उपचार लिखती हैं। जबकि वार्डब्यॉय और स्वीपर मरीजों को दवाएं बांटते हैं।

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अक्टूबर 2014 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नगला पोता में शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना की गई थी। मुख्यालय पर जिला अस्पताल और जिला महिला अस्पताल होने के बावजूद अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र खोले जाने की पीछे तर्क था कि इससे उन लोगों को लाभांवित किया जाएगा, जो अभी अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। टीकाकरण और डिलीवरी को भी रफ्तार दी जाएगी। मलिन बस्ती में शामिल इस इलाके में गरीब, मजदूर तबका काफी है। जिसे अस्पताल खुलने से घर के पास ही इलाज की उम्मीद जगी लेकिन उनकी उम्मीदें अस्पताल की कार्यप्रणाली देखकर बहुत ही जल्द चूर हो गईं। शुरू से ही डॉक्टर की कमी रही। लंबे समय बाद एक डॉक्टर आए भी, तो एक महीने बाद चले गए। तीन महीने से अस्पताल डॉक्टर विहीन है। इसके चलते सामान्य रोगियों की संख्या कम रहती है। जानकारी के अभाव में तमाम लोग पहुंचते हैं। डॉक्टर की सीट पर बैठी स्टाफ नर्स को ही डॉक्टर समझकर राय लेने पहुंच जाते हैं। नर्स भी उन्हें डॉक्टर की तरह ही उपचार लिख देती हैं। दवा देने के लिए फार्मासिस्ट अक्सर नदारद होते हैं। इसे जिम्मेदारी को वार्ड ब्यॉय और स्वीपर निभाते हैं। हालांकि उनकी शैक्षणिक योग्यता नगण्य है और जानकारी के अभाव में किसी को भी गलत दवा थमा सकते हैं। क्षेत्र के अशिक्षित और बिना जानकारी वाले लोग पूरे विश्वास के साथ यहां इलाज कराने आते हैं, लेकिन उनके साथ यहां छलावा ही अधिक किया जा रहा है।

अर्बन आशा कार्यकत्रियां नाकाम

शहर में स्वास्थ्य सेवाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पिछले वर्ष अर्बन आशाओं की नियुक्ति की गई थी। उम्मीद थी कि वे डिलीवरी आदि में सहयोग करेंगी लेकिन उनके हाथ भी खाली हैं, डिलीवरी के लिए महिलाओं को लाने में ये आशा कार्यकत्रियां नाकाम बनी हुई हैं।

पांच में से एक एएनएम भी केंद्र पर नहीं

स्वास्थ्य केंद्र पर पांच एएनएम की तैनाती की गई है। इससे कि टीकाकरण आदि कार्यक्रमों में कोई व्यवधान न हो लेकिन एएनएम का स्वास्थ्य केंद्र पर मिलना आसान नहीं होता। अधिकांश दिनों में एक भी एएनएम नहीं होती। बताया जाता है कि सब फील्ड में हैं।

पैथोलॉजी लैब रहती है खाली

खून आदि की जांच के लिए यहां सुसज्जित पैथोलॉजी लैब स्थापित की गई है लेकिन कर्मचारी इसमें कार्य नहीं करना चाहते। वे हॉल में बैठकर ही मरीजों का रक्त परीक्षण कर लेते हैं।

दो ही बैड उपलब्ध

विभाग की मानें तो अर्बन पीएचसी के लिए पांच बैड दिए गए हैं लेकिन यहां दो ही बैड उपलब्ध हैं। जो टीकाकरण कक्ष में डाले गए हैं। यह बात अलग है कि डिलीवरी न होने और डॉक्टरों के अभाव से ये दो बैड भी कर्मचारियों के आराम फरमाने के काम आते हैं।

अधिकारी के बात

आगरा के डॉ. राहुल वाष्र्णेय की संविदा के आधार पर नियुक्ति हुई थी लेकिन एक महीने ही काम कर वे इस्तीफा दे गए। इसके बाद से संविदा पर कोई एमबीबीएस डॉक्टर नहीं मिल सका है। प्रसव कराने पर जोर दिया जा रहा है। वार्ड ब्यॉय या स्वीपर को दवा बांटने का अधिकार नहीं है, ऐसा हो रहा है तो कार्रवाई की जाएगी।

- डॉ. आरसी पांडेय, सीएमओ


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