एटा:: तीन लोक की संपदा, सो गुरु दीन्ही दान
अनिल गुप्ता, एटा: 'गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान। तीन लोक की संपदा, सो गुरु दीन्ही दान' यानि गु
अनिल गुप्ता, एटा: 'गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान। तीन लोक की संपदा, सो गुरु दीन्ही दान' यानि गुरु तीनों लोक की संपत्ति से बढ़कर ज्ञान देने वाले हैं। आज गुरु पूर्णिमा है और संतों की नगरी सोरों में ऐसे कई गुरु हुए हैं जिन्होंने शिष्य का जीवन ही बदल दिया। गुरु नरसिंह चौधरी भी इनमें से एक हैं। जिनकी नियमित सेवा करने वाला शिष्य न केवल महान संत बना। बल्कि उन्होंने श्रीरामचरित मानस जैसे महाग्रंथ की रचना कर डाली।
तुलसी के थे कई गुरु
तुलसीदास के गुरु के रूप में कई नाम लिए जाते हैं। तुलसीदास ने जिससे भी ज्ञान प्राप्त किया उसी को गुरु मान लिया। यही वजह है कि भविष्यपुराण के अनुसार संत तुलसीदास के गुरु राघवानंद और जगन्नाथ दास, सोरों में नरसिंह चौधरी तथा नरहरि के नाम लिए जाते हैं। तुलसीदास ने रामायण की कथा अपने गुरु नरहरिदास से प्रथम बार यहीं पर सुनी थी। डॉ.हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी प्रमाणों के आधार पर तुलसी के गुरु नरसिंह चौधरी ही बताए हैं।
जगद्गुरु के शिष्य भी बने जगद्गुरु
सोरों गुरुओं की तपोस्थली रही है। वर्ष 1905 में जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज ने गंगा किनारे कुटिया बनाकर अपने शिष्य माधवाचार्य सरस्वती को ज्ञान दिया। आगे चलकर वो भी शंकराचार्य बने।
पृथ्वी के गुरू भगवान वराह
भगवान वराह भी पृथ्वी के गुरु बने। मान्यता है कि भगवान ने हिरणयाक्ष्य के चंगुल से पृथ्वी को मुक्त कराने के बाद सृष्टि की रचना के लिए उन्हें ज्ञान दिया जिसके बाद पृथ्वी की पुनस्र्थापना हुई। इसके बाद ही भगवान वराह ने देह विसर्जन किया। भगवान वराह के पुण्य प्रभाव से सोरों को विश्व संस्कृति के उदगम् स्थलों में से एक माना गया है। उसे शूकर क्षेत्र भी कहा जाता है।
गुरुओं के आश्रम
गुरु पूर्णिमा पर सोरों में स्वामी महेशानंद सोहम आश्रम, कटऊ बाबा आश्रम, स्वामी अमृतानंद बाबा आश्रम, ज्योति वाले बाबा आश्रम, मनमस्त महाराज आश्रम, नगालैंड आश्रम, टाटिया बाबा आश्रम आदि स्थानों पर गुरु महिमा का बखान होता है। सोरों गुरुओं की तपोस्थली रही है इसलिए यहां की जाने वाली गुरुपूजा का विशेष महत्व है। गुरुपर्व पर लाखों लोग गुरू का यहां आकर पूजन करते हैं।