सुस्त नीतियों की भेंट चढ़ा 'परिवार कल्याण'
जागरण संवाददाता, एटा: परिवार कल्याण कार्यक्रम सुस्त नीतियों की भेंट चढ़ गया। न तो नसबंदी ऑपरेशन में ही विभाग कुछ खास कर सका और न ही गर्भ की रोकथाम के प्रति ही तैयारियां रंग ला सकीं।
बात व्यवस्थाओं की करें तो बीते वर्षो की अपेक्षा वर्ष 2013-14 में स्वास्थ्य विभाग की मजबूती कहीं अधिक रही। विभाग के पास नसबंदी ऑपरेशन करने के लिए दो महिला चिकित्सक और कॉपर-टी लगाने को प्रशिक्षित नर्सिग स्टाफ मौजूद रहा। इसके बावजूद भी कार्यक्रम में कोई उल्लेखनीय परिणाम हासिल नहीं हो सके। बीते वर्ष में नसबंदी शिविर की संख्या तो बढ़ाई गई लेकिन कभी चिकित्सक के अवकाश पर होने तो कभी अव्यवस्थाओं के चलते नसबंदी की इच्छुक महिलाओं को वापस लौटना पड़ा जबकि पुरुष नसबंदी के लिए विभाग ने किसी प्रकार की कोई व्यवस्था ही नहीं की हालांकि प्रशासन ने इसके लिए लोगों को जागरूक करने और अन्य जनपद से सर्जन चिकित्सकों को बुलाकर शिविर कराने के निर्देश दिए थे लेकिन सभी निर्देश हवा में तैरते रहे और धीरे-धीरे कर साल बीत गया। पूरे साल में विभाग 1627 महिलाओं की ही नसबंदी करा सका। जबकि लक्ष्य 2500 था। कॉपर-टी के आंकड़े तो और अधिक चौंकाने वाले रहे। प्रशिक्षित स्टॉफ होने के बावजूद 22759 के सापेक्ष 13404 केस हुए। जबकि वर्ष 2012-13 में इससे अधिक 13893 केस किए गए थे। मुख्य चिकित्साधिकारी डा. आरसी पांडेय ने बताया कि कासगंज जनपद के अंतर्गत नसबंदी शिविर में भी एटा से ही चिकित्सकों को भेजा जाता है। जिसके चलते एटा में संख्या कम रही।
चिकित्सका बढ़ीं उपलब्धि वही
इस वर्ष में जिला चिकित्सालय में एक महिला चिकित्सक की तैनाती की गई। जिसके साथ ही जनपद में नसबंदी ऑपरेशन करने वाली चिकित्सक एक से बढ़कर दो हो गई। इसके बावजूद पिछले वर्ष की अपेक्षा उपलब्धि में कोई खास इजाफा नहीं हुआ। वर्ष 2012-13 में जहां नसबंदी ऑपरेशन की संख्या 1564 थी। वहीं गुजरे वर्ष में यह आंकड़ा मामूली बढ़त के साथ 1627 तक ही पहुंचा।