एकाग्र मन से होता है श्रेष्ठ ¨चतन : शशिकांत
देवरिया : गायत्री शक्तिपीठ कसया रोड पर चल रहे चौबीस कुंडीय गायत्री महायज्ञ एवं संस्कार के तीसरे द
देवरिया : गायत्री शक्तिपीठ कसया रोड पर चल रहे चौबीस कुंडीय गायत्री महायज्ञ एवं संस्कार के तीसरे दिन बुधवार को प्रवचन में हरिद्वार की टोली के नायक शशिकांत ¨सह ने कहा कि एकाग्र मन से ही श्रेष्ठ ¨चतन होता है। सत्संग पावन गंगा है। संगति सोच-समझ कर करनी चाहिए। भोगवादी संस्कृति से हमें दूर रहने की जरूरत है। अदूरदर्शिता हमारे दृष्टिकोण को बदल देती है। संसार से चिपके न, अन्यथा कष्ट में पड़ना पड़ेगा। यदि हमने अपने को बदल लिया तो दुनिया बदल जाएगी।
उन्होंने कहा कि तांत्रिक, कामना पीड़ित, कृपण, मूढ़, अति दरिद्र, तृष्णाग्रसित, आशावान, रोग ग्रसित, तन पोषक, ¨नदक ये जीवित शव हैं। हमारा जीवन कमल के समान होना चाहिए। हमारी संस्कृति थोपी हुई नहीं, स्वीकार करने वाली है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति के दो मूल आधार यज्ञ पिता व गायत्री मां है। गायत्री सद्बुद्धि देती हैं, जबकि यज्ञ सत्कर्म है, लेकिन आज हमने अपने माता-पिता को छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि दीप ज्ञान का प्रतीक है, जो हमें अच्छाई से जोड़ता है।
इससे पहले प्रात:काल चौबीस कुंडीय यज्ञ में बड़ी संख्या में याजक शामिल हुए। यज्ञ में पांच दीक्षा संस्कार, दो विद्या व एक अन्नप्रासन संस्कार हुआ। शाम को दीप महायज्ञ का आयोजन किया गया। 1008 दीपक जब प्रज्ज्वलित हुए तो जैसे व्योम की तारावत्तियां मंदिर परिसर में उतर आई है। पूजन नपाध्यक्ष श्रीमती अलका ¨सह ने किया।
इस दौरान रामवृक्ष मौर्य, विजय बहादुर ¨सह, नागेंद्र श्रीवास्तव, हरिशंकर मणि, रामभवन चौरसिया, डा. उमाशंकर, शैलेंद्र कुमार राय, केदार नाथ जायसवाल, गुड्डू राय, संजय राय, स्वामीनाथ राय, जयश्री प्रसाद, सुरेंद्र, ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव, रेनू, उमरावती, सुमित्रा, आशा मणि, का¨लदी, चंद्र मोहन, मीरा श्रीवास्तव आदि उपस्थित रहे।