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गुम हो गए शहर के ताल-पोखरे

जागरण संवाददाता, देवरिया : चिलचिलाती धूप में जल के घोर संकट से पशु-पक्षी बेहाल हैं। तालाब व पोखरे ब

By Edited By: Published: Sat, 30 Apr 2016 11:02 PM (IST)Updated: Sat, 30 Apr 2016 11:02 PM (IST)
गुम हो गए शहर के ताल-पोखरे

जागरण संवाददाता, देवरिया : चिलचिलाती धूप में जल के घोर संकट से पशु-पक्षी बेहाल हैं। तालाब व पोखरे बेपानी हो गए हैं। पानी का लेबल लगातार नीचे गिरता जा रहा है। फिर भी प्रशासनिक अफसर बेपरवाह हैं। उनकी बेरुखी का ही परिणाम है कि भू-माफियाओं ने राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी की। उन पोखरों के अस्तित्व को भी कागज में समाप्त कर दिया गया, जो फिलहाल अस्तित्व में हैं। जलस्त्रोतों की यह दशा प्रमाण है कि प्रकृति ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक अफसरों ने भी जीव जंतुओं के संरक्षण व संव‌र्द्धन से मूंह मोड़ लिया है।

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जल के घोर संकट को देखते हुए पूरे देश में खलबली मची है। इसके लिए महज प्रदेश सरकार ही नहीं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री भी मन की बात के दौरान देशवासियों को संबोधित करते हुए जल संरक्षण की बात कह गए। हकीकत यह है कि शहर के राजस्व अभिलेखों से पोखरे गायब हैं। अधिकारी यह बता पाने की स्थिति में नहीं कि कुल कितने पोखरे व तालाब शहरी क्षेत्र में हैं। राजस्व अभिलेख में शहर में पोखरे न होने का भांडा वर्ष 2012 में तब फूटा जब विधान सभा के एक सदस्य ने सरकार से सवाल पूछा कि देवरिया शहर में कुल कितने पोखरे अस्तित्व में हैं। सवाल का जवाब तैयार करने में जुटे तत्कालीन सदर तहसीलदार व नगर पालिका प्रशासन ने भारी मन से कहा कि राजस्व अभिलेख तालाब से पूरी तरह से खाली हैं। यानी कि तालाब की संख्या शून्य है। हालांकि शहर में लच्छी राम पोखरा, परमार्थी पोखरा, सोमवानाथ मंदिर स्थित पोखरा, देवरही मंदिर स्थित पोखरा रामगुलाम टोला स्थित बेरमहिया पोखरा, लंगड़ी देवरिया स्थित हाथी कुंड पोखरा, हनुमान मंदिर पोखरा आदि इस समय भी अस्तित्व में है, लेकिन कागजात में यह भूमि कृषि योग्य के रूप में दर्ज है। यहां कागजों में नहीं बल्कि पहले से पोखरा के स्वरुप होने के नाते या तो नपा प्रशासन या फिर स्वयं मंदिर समिति के लोग देखभाल में लगे रहे। आज हालात यह है कि उक्त पोखरों में पानी की दरकार है। पोखरे कूड़ा, करकट से भरे हैं यही नहीं त्योहारों में श्रद्धालुओं द्वारा बनाई गई प्रतिमाओं का जो विसर्जन किया गया वह भी पोखरे भरे हैं मगर इसके लिए किसी ने पहल नहीं की, जिससे की जल संचयन किया जा सके। पशु पक्षी भी भीषण तपती धूप में अपनी प्यास बुझा सकें।


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