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ब्रस उद्योग से लौटी तीन सौ परिवारों की मुस्कान

देवरिया: पूर्वांचल में कहावत हैं मरा हाथी भी सवा लाख का। कुछ यही दशा बरहज के ब्रस उद्योग की है। पराभ

By Edited By: Published: Sun, 07 Feb 2016 10:48 PM (IST)Updated: Sun, 07 Feb 2016 10:48 PM (IST)
ब्रस उद्योग से लौटी तीन सौ परिवारों की मुस्कान

देवरिया: पूर्वांचल में कहावत हैं मरा हाथी भी सवा लाख का। कुछ यही दशा बरहज के ब्रस उद्योग की है। पराभव के दौर में भी यह क्षेत्र के लगभग तीन सौ से अधिक युवाओं के रोजगार का जरिया बना हुआ है और इनको राह दिखाई है आजाद नगर उत्तरी निवासी प्रमोद सोनकर पुत्र सीताराम सोनकर ने। खुद को ब्रस निर्माण से जोड़कर न केवल मुकाम हासिल किया बल्कि युवाओं को स्थानीय स्तर रोजगार मुहैया कराकर आत्म निर्भर बनाया। श्री सोनकर युवाओं के लिए प्रेरणाश्रोत बने हुए हैं।

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युवा होने पर रोजगार की तलाश में काफी भटकने के बाद प्रमोद सोनकर ने अपने घर पर ही ब्रस बनाने का पुश्तैनी कार्य शुरु किया। शुरुआती दौर में करीब एक दर्जन युवाओं को ब्रस बनाने का प्रशिक्षण दिया और रोजगार मुहैया कराया। उस समय कच्चा सामान मंगाने और तैयार ब्रसों को बेचने में काफी दिक्कत आई लेकिन प्रमोद ने हार नहीं मानी। दिक्कतों से लड़ते हुए उन्होंने अपने कार्य का विस्तार किया और एक कार्यालय खोल दिया। इससे उन्हें माल मंगाने और बेचने का कार्य आसान हो गया। मांग बढ़ने पर और अधिक कारीगरों को इससे जोड़ा। इससे उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया ही युवाओं को भी आत्म निर्भर बनाया। वर्तमान में क्षेत्र के तिवारीपुर, गौरा, जयनगर, कटइलवा, पुरना बरहज, नया नगर, बालूछापर सहित दर्जन भर गांवों के डेढ़ सौ कुशल कारगर और इतनी ही संख्या में युवक ट्रांसपोर्टिंग तथा अन्य कार्यों में लगे हुए हैं।

युवक यहां मजदूरी कर अपने और का भविष्य खुशहाल बना रहे हैं। प्रमोद का अनुसरण करते हुए अन्य लोगों ने भी ब्रस निर्माण शुरु किया। इस समय नगर के दर्जन भर स्थानों ब्रस निर्माण का कार्य चल रहा है। इस उद्योग ने युवाओं की बेरोजगारी दूर करने में मदद की है।

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खुशहाल हुआ जीवन

-लंबे अर्से से ब्रस निर्माण में लगे फौजदार, रामानुज, कपूर प्रसाद, झब्बू प्रसाद, रविन्द्र, संजय कुमार, संतोष, भुटेली सोनकर ने बताया कि वे लोग पहले मुंबई और दिल्ली जाकर मजदूरी करते थे, लेकिन घर खर्च मुश्किल से चल पाता था। जब इस कार्य में तब से जीवन की दशा बदल गई। उनका कहना है कि आज अपने की शहर पर्याप्त काम और मजदूरी मिल जा रही है। जिससे घर परिवर खुशहाल हुआ है। बच्चों को भी अच्छे स्कूल में शिक्षा दे रहे हैं।

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प्रशासन से नहीं मिल रहा सहयोग

-बरहज के ब्रस उद्योग को जीवित रखने की जद्दोजहद में लगे प्रमोद प्रशासनिक उपेक्षा से आहत है। उनका कहना है कि सैकड़ों युवा इस कारोबार में लगे हैं। ब्रस निर्माण के लिए उद्योग विभाग में पंजीकरण कराने के बावजूद ऋण अथवा अन्य सुविधाएं नहीं मिलती। बैंकर्स और प्रशासनिक अफसरों के दरवाजे पर मत्था टेकने के बावजूद कोई हमारी बात नहीं सुनता। अगर हमें प्रशासन का सहयेाग मिले बरहज का पुराना गौरव वापस लौटा दिया जाएगा।


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