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बुझने के कगार पर उम्मीदों का दीया

देवरिया : जनपद में चीनी मिलों को बेचकर फिर से स्थापित करने की कड़ी में गौरीबाजार चीनी मिल को आइएफसीआइ

By Edited By: Published: Wed, 29 Apr 2015 09:01 PM (IST)Updated: Wed, 29 Apr 2015 09:01 PM (IST)
बुझने के कगार पर उम्मीदों का दीया

देवरिया : जनपद में चीनी मिलों को बेचकर फिर से स्थापित करने की कड़ी में गौरीबाजार चीनी मिल को आइएफसीआइ ने कुछ शर्तों के तहत राजेंद्र इस्पात, कोलकाता को सुपुर्द किया। 17 करोड़ में बिकने वाली गौरीबाजार चीनी मिल पर श्रमिकों व किसानों का 22.67 करोड़ रुपये बकाया है। उसके भुगतान होने की उम्मीद में ¨जदगी बसर कर रहे किसानों एवं श्रमिकों को स्क्रैप काटकर ले जाने की सूचना जब मिलती है तो जनप्रतिनिधियों के साथ मिल गेट रणनीति बनाने लगते हैं। आखिर चीनी मिल बंदी के बाद कब तक उनकी गाढ़ी कमाई सियासत में उलझी रहेगी। यह भविष्य के गर्त में है। एक बार पुन. गौरीबाजार में चीनी मिल को लेकर सियासत गरमाने लगी है।

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विदित है कि सन 1914 में ब्रिटिश हुकूमत के कार्यकाल में गौरीबाजार चीनी मिल स्थापित की गई थी। 82 वर्ष बाद सन 1996 में इस ऐतिहासिक चीनी मिल को जिसकी पेराई क्षमता जनपद में सर्वाधिक थी, अस्थाई रूप से बंद कर दी गई। चीनी मिल चलाने को लेकर आंदोलनों का दौर चला। श्रमिकों व प्रबंधन के बीच मारपीट की कई घटनाएं हुईं। दोनों तरफ से मुकदमें भी दर्ज हुए। बंदी के समय किसानों का गन्ना मिल परिसर में ही सूख गया। 1998 में इस मिल के इतिहास में एक नया मोड़ आया, जब गंगोत्री इंटरप्राइजेज ने खरीदा। शर्तें पूरी न होने पर पुन: सन 2005 में उद्यमी जवाहर जायसवाल ने इस मिल को पुन: खरीद लिया। इस बीच श्रमिकों तथा किसानों ने भुगतान को लेकर बीआइएफआर में मुकदमा कर दिया, जिससे मिल फिर से पूर्व की स्थिति में आ गई। फिर चीनी मिल की परिसंपतियों का आंकलन किया गया। उस समय चीनी मिल श्रमिकों के वेतन व ग्रेच्युटी का साढ़े ग्यारह करोड़ बकाया था। वर्तमान में यह धनराशि बढ़कर 21 करोड़ हो चुकी है, जिसमें श्रमिकों का वेतन, पीएफ, ग्रेच्युटी, रिटे¨नग शामिल है, जबकि किसानों 1.67 करोड़ रुपये बकाया हैं। अब पुन: आइएफसीआइ ने राजेंद्र इस्पात कोलकाता को इन शर्तों के साथ कि बकाया भुगतान कर चीनी मिल को चलाया जाए, दे दिया। अब जब मिल मालिक स्क्रैप काटकर ले जाने का प्रयास कर रहा है, तो जनप्रतिनिधियों सहित श्रमिक नेताओं ने विरोध शुरू कर दिया है। श्रमिकों व किसानों की अंतिम उम्मीद इस आस में कि स्क्रैप रोका जाए तो भुगतान होगा, टूटने लगी है।

सदर विधायक जन्मेजय ¨सह ने कहा कि प्रशासन की मिलीभगत से मिल मालिक स्क्रैप ले जाने का प्रयास कर रहा है। जब तक भुगतान नहीं हो जाता चीनी मिल से एक तिनका भी नहीं ले जाने नहीं दिया जाएगा। इस संबंध में कपड़ा मंत्रालय मे शिकायत दर्ज करा दी गई है।

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श्रमिक नेता रमाशंकर ¨सह ने कहा कि भुगतान के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है, जबकि सपा नेता मुकुल ¨सह ने जिलाधिकारी को पत्रक सौंपते हुए भुगतान किए बिना स्क्रैप ले जाने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। मजदूर नेता जिउत यादव ने कहा कि श्रमिकों का बिना भुगतान किए चीनी मिल से एक भी सामान जाने नहीं दिया जाएगा। श्रमिकों का 21 करोड़ भुगतान करना होगा।


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