खौफ के साये में बीते चौबीस घंटे
देवरिया : बीते चौबीस घंटे से जनपदवासी खौफ के साये में जीवन यापन कर रहे हैं। मानों डर ने लोगों के जेह
देवरिया : बीते चौबीस घंटे से जनपदवासी खौफ के साये में जीवन यापन कर रहे हैं। मानों डर ने लोगों के जेहन में डेरा डाल दिया हो। भय, दहशत व अनहोनी की आशंका से लोगों की नींद उड़ गई है। प्रकृति के बदले तेवर से चहुंओर दहशत का माहौल है। क्या करें क्या न करे। लोग इसी उधेड़बुन में हैं।
शुक्रवार की शाम करीब चार बजे काले बादलों ने जब समूचे जिले को अपने आगोश में समेटा तो लोगों के कान खड़े हो गए। तमाम झंझावातों से जूझने के बाद रबी की फसल जैसे-तैसे घर तक लाने वाले मेहनतकश किसान प्रकृति के इस रौद्र रूप को देख सकते में थे। तेज हवा के साथ चहुंओर ओले पड़ने लगे। भीषण गर्मी के बाद अचानक ठंड ने दस्तक दे दी। लोग तेजी के साथ अपने घरों में दुबकने को मजबूर हो गए। शाम ढलने के कुछ ही देर बाद शहर व कस्बे ही नहीं जिले की सड़कें भी वीरान हो गईं। फिर तो चारों तरफ गड़गडा़ते बादलों का डेरा हो गया। कड़कती बिजली कहां गिरी। इस सवाल का जवाब कुछ देर तक मोबाइल के जरिए तलाशा गया। फिर नेटवर्क ध्वस्त होने के बाद सिर्फ अनुमान लगाना लाचारी बन गई। करीब तीन घंटे की घनघोर बारिश के बाद कुदरत ने ज्यों राहत की सांस ली, त्यों वह लोग भी घर की तरफ निकल पड़े जो बाजार अथवा अपनी दुकानों में कैद थे। मध्यरात्रि में एक बार फिर तेज हवाएं चलीं। साथ ही बादलों का गरजना भी शुरू हुआ। मानों भाद्रपद माह हो। स्याह रात निहारने की बजाय लोग अपने बिस्तर में दुबकना ही मुनासिब समझा। उम्मीद थी कि शनिवार की सुबह सुहानी होगी। सुबह आसमान में बादलों का डेरा था। हल्की-फुल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। लोग इस उम्मीद में थे कि चंद समय में ही मौसम करवट लेगा। रोजमर्रा की भांति लोग अपने कार्यस्थल व व्यावसायिक प्रतिष्ठान की ओर कूच कर गए। बाजार में रौनक बढ़ी। सरकारी व निजी दफ्तरों के अलावा न्यायालय आदि पूर्व की भांति खुले। शहर की समूची सड़कें भीड़ से पटी थीं। तभी करीब साढ़े 11 बजे लोगों की सांस अचानक अटक गई। फिजां में शोर हुआ कि भूकंप आया है। यह सुनते ही लोगों के पांव पहले पल भर के लिए ठिठके। फिर उस स्थान की तलाश शुरू हुई जहां अपनी जान सुरक्षित की जा सके। फिर शुरु हुआ अपनों के कुशल क्षेम पूछने का सिलसिला। इसके अलावा करीबियों को सलाह दी जाने लगी कि वह सुरक्षित स्थान पर पहुंचे। तभी दूरसंचार की सरकारी सेवा अचानक ध्वस्त हो गई। लोगों में बेचैनी व झुंझलाहट मच गई। मानों मौत सिर पर खड़ी हो, जिनकी बात परिजनों से नहीं हो सकी। वह तत्काल घर के लिए रवाना हो गए। घर पहुंच कर उन्होंने भूकंप से बचाव के जरूरी सलाह दी। एक घंटे से भी कम गुजरा होगा। तभी भूकंप का दूसरा झटका महसूस हुआ। इससे लोगों के हाथ-पांव फूलने लगे। अनहोनी की आशंकाएं और प्रबल होने लगीं। दूसरे झटके के बाद डर से सहमे लोग घरों से दोबारा बाहर निकले। इसके बाद कुदरत की नियत को लेकर कयासों का दौर शुरू हुआ। सिलसिला देर शाम तक चला तभी करीब सवा छह बजे तीसरा झटका महसूस हुआ। ऐन वक्त दूरसंचार माध्यमों से लोगों को पता चला कि भूकंप के और झटके रात्रि के पहर में आएंगे। यह सुनते ही लोगों का दिल बैठने लगा। अनहोनी की आशंका से समूचे जनपद में लोगों की नींद उड़ी हुई है। अंतत: लोग यह जुमला कहने को मजबूर हो गए कि जाको राखे साइयां मार सके न कोय।