करोड़ों खर्च के बाद भी नतीजा शून्य
देवरिया : जल संरक्षण को लेकर शासन स्तर से जिले में भरपूर प्रयास हुए हैं, लेकिन धरातल पर यह प्रयास फल
देवरिया : जल संरक्षण को लेकर शासन स्तर से जिले में भरपूर प्रयास हुए हैं, लेकिन धरातल पर यह प्रयास फलीभूत नजर नहीं आ रहा है। जल संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपये प्रति वर्ष खर्च हो रहे हैं, लेकिन नदी, तालाब व पोखरे बदहाल पड़े हैं। उनका कोई पुरसाहाल नहीं है। इतना ही नहीं इक्का-दुक्का को छोड़ मुख्यमंत्री आदर्श जलाशय योजना में खुदवाए गए 130 और मनरेगा के तहत खोदे गए 1013 तालाबों में भी जल संरक्षण का असर भी नहीं दिखता।
जल संरक्षण के लिए सरकारों ने भरसक कोशिश की, लेकिन अधिकारियों ने उसे धरातल पर नहीं आने दिया। जल संरक्षण की विफलता का सबसे बड़ा कारण यही रहा कि करोड़ों खर्च होते गए, लेकिन किसी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा कि खोदे गए तालाबों की दशा क्या है। सरकार ने स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत पोखरो की खुदाई कराई, जिसमें करोड़ों रुपये खर्च हुए। जब यह योजना बंद हुई तो शासन ने 2006-07 व 2007-08 में मुख्यमंत्री आदर्श जलाशय योजना के तहत 130 पोखरों का निर्माण कराया। प्रति तालाब निर्माण पर 1 से 2 लाख रुपये खर्च किए गए, फिर भी पोखरों की सूरत नहीं बदली। वजह थी आरईएस कार्यदायी संस्था ने आधी अधूरी खुदाई कराकर भुगतान ले लिया। जब जल संकट खड़ा हुआ तो एक बार फिर तत्परता दिखाते हुए 2010-11 व 2011-12 में जिले की 1017 ग्राम पंचायतों में जल संरक्षण के लिए पोखरों का निर्माण कराना था, लेकिन 1013 पोखरों का ही निर्माण हो सका। हर पोखरे पर करीब दो से तीन लाख रुपये खर्च हुए थे। पोखरे खुदाई कराने के बाद सीढ़ी, किनारे बैरीकेडिंग, पौधरोपण आदि कार्य होने थे। एक ही पोखरे को एसजीएसवाई, मुख्यमंत्री आदर्श जलाशय योजना और मनरेगा के तहत निर्माण कराया गया, फिर भी वे बदहाल ही रहे। आखिर इतनी बड़ी धनराशि कहां गई। यह सवाल आज भी सवाल ही बना है।