कविता के सौंदर्य मूलक पक्ष ग्राह्य
देवरिया : कविता का सौंदर्यपरक औचित्य स्वयं सिद्ध है। सतही आयामों का दिग्दर्शन कराना तो आम बात है, कि
देवरिया : कविता का सौंदर्यपरक औचित्य स्वयं सिद्ध है। सतही आयामों का दिग्दर्शन कराना तो आम बात है, किंतु कविता जब रसवंती, बुद्धिवंती, लाजवंती, सौम्यवंती बनती है तो जादुई सौंदर्य पैदा होता है।
यह बातें सामाजिक एवं साहित्यिक संगठन प्रत्यांतर के अध्यक्ष आनंद कंद पांडेय ने कही। वह रविवार को गौरा कार्यालय पर आयोजित संगठन की विचार गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कवि कर्म में रस्सा चिंतक भावांवेषण आवश्यक है। समय की शिला आज इतनी खामोश और डगर इतनी भय वर्धक है कि साहित्यिक कर्म का पूंजीवादी विश्लेषण किया जाता है। कविता में बढ़ता पूंजीवाद साहित्य के लिए अशुभ संकेत है। अगर इसे रोका न गया तो यह स्थिति देश व समाज के लिए घातक साबित होगी। गोष्ठी को राधारमण पांडेय, लालू प्रसाद, आनंद प्रकाश आदि ने संबोधित किया।