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एक ऐसी भी रेलवे क्रासिंग!

देवरिया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में बुलेट ट्रेन चलाने की सपना संजोए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कु

By Edited By: Published: Sun, 26 Oct 2014 10:25 PM (IST)Updated: Sun, 26 Oct 2014 10:25 PM (IST)
एक ऐसी भी रेलवे क्रासिंग!

देवरिया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में बुलेट ट्रेन चलाने की सपना संजोए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही हैं। जहां ट्रेन रोक कर रेलवे क्रासिंग बंद करने की जिम्मेदारी चालक करता है।

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देवरिया जनपद में सलेमपुर-बरहज रेल खंड पर चलने वाली बरहज ट्रेन की स्थिति बैलगाड़ी से भी बदतर हो गई है। रेल खंड पर चकरा के समीप ढाला तो है, लेकिन उसे बंद करने के लिए कर्मचारी की तैनाती नहीं है। ऐसे में जब ट्रेन वहां से गुजरती है तो पहले चालक ट्रेन को रोकता है और फिर ढाला बंद होता है। जिसके बाद ट्रेन उस ढाले से आगे बढ़ती है। बिना स्टेशन व स्टापेज के यहां ट्रेन रुकने के चलते रेलवे विभाग को राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है।

सलेमपुर से बरहज जाने वाली बरहज ट्रेन का इतिहास बहुत पुराना है। एक जमाने में बरहज नदी मार्ग से व्यापार का एक बड़ा केंद्र हुआ करता था। रेल मार्ग से भी व्यापार की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अंग्रेजों ने 1896 में इस रेल लाइन का निर्माण कराया। उस समय से इस पर बरहज ट्रेन दौड़ती हैं। माल ढुलाई और व्यापारियों के कारण यह रेल खंड लाभ का सौदा रहा। आजादी के बाद भी रेलवे को इससे खूब आमदनी होती रही, लेकिन अब बरहज के उद्योग बंद हो गए हैं। जिसके चलते रेलवे के लिए अब यह घाटे का सौदा हो गई है। यह ट्रेन दिन भर चार बार बरहज जाती है और चार बार आती है। जिसमें दो बार भटनी से तो दो बार सलेमपुर से खुलती है।

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सोलह बार रुकती है ट्रेन

खास बात यह है कि इस रेल खंड पर देवरहा बाबा व सतरांव रेलवे स्टेशन के बीच में चकरा ढाला है। जिस पर किसी कर्मचारी की तैनाती नहीं है। जब ट्रेन ढाला के समीप पहुंचती है तो ट्रेन को चालक रोक देता है और उसमें उतर कर एक कर्मचारी ढाला को पहले बंद करता है। फिर वह ट्रेन ढाला से गुजरती है और आगे जाकर रुक जाती है। इसके बाद ट्रेन से उतरा कर्मचारी ढाला को खोलता है और फिर ट्रेन में चढ़ जाता है। जिसके बाद ट्रेन अपने गंतव्य को रवाना होती है। इस तरह यहां दिन भर में सोलह बार ट्रेन रुकती है। यहां ट्रेन रुकने के चलते क्षेत्र के दर्जनों गांवों के सैकड़ों लोग प्रतिदिन इस ढाला पर ट्रेन के समय पर आ जाते हैं।

पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी आलोक कुमार सिंह का कहना है कि उस ढाला पर कर्मचारी की तैनाती नहीं हो सकती है। अगर कर्मचारी की तैनाती की जाती है तो वहां तमाम तरह की व्यवस्था करनी पड़ेगी। जबकि उस रुट पर मात्र एक ही ट्रेन का संचलन हो रहा है। इसलिए ट्रेन से जाने वाले कर्मचारी ही उस फाटक को बंद करते हैं। -------------------------

लाइफ लाइन है बरहजिया

अंग्रेजी हुकुमत से चल रही बरहजिया आज भले ही पूर्वोत्तर रेलवे के लिए घाटे में चल रही हो, लेकिन पहले इससे प्रत्येक महीने लाखों रुपए रेलवे को आमदनी देती थी। हाल के दिनों में इस रेल खंड से रेलवे को नुकसान होने लगा तो रेल प्रशासन ने इसे बंद करने की तैयारी कर दी, लेकिन जन दबाव में घाटा होने के बाद भी इस ट्रेन को चलाया जा रहा है। लोगों के लिए ट्रेन नहीं, लाइफ लाइन है।

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क्या कहते हैं रेलवे के जानकार

रेलवे के जानकारों की माने तो इस रेल खंड से प्रत्येक महीने पूर्वोत्तर रेलवे को लाखों रुपये का नुकसान है। पहले देवरहा बाबा हाल्ट, सतरांव, सिसई गुलाब राय व बरहज स्टेशन पर रेलवे के कर्मचारी हुआ करते थे, लेकिन घाटा होने के चलते स्टेशनों को प्राइवेट हाथों में सौंप दिया गया। रेलवे के जानकार बताते हैं कि अगर ट्रेन वहां एक बार रुकती है और खुलती है तो कम से कम पांच लीटर डीजल रेलवे का जलता है। इस तरह 16 बार ट्रेन के रुकने से लगभग 80 लीटर तेल केवल चकरा ढाला पर रुकने में जलता है। ------------------------

रेलवे ने मांगा था प्रस्ताव

चकरा ढाला पर ही रेलवे ने 16 माह पूर्व हाल्ट बनाने को लेकर प्रस्ताव किया था। 22 मई 2013 को महाप्रबंधक कार्यालय गोरखपुर के वाणिज्य विभाग के डा.मनोज कुमार श्रीवास्तव ने भागलपुर व सलेमपुर के खंड विकास अधिकारियों को एक पत्र भेजा था। जिसमें देवरहा बाबा व सतरांव रेलवे स्टेशन के मध्य के गांवों के नाम व जनसंख्या का रिकार्ड मांगा था, लेकिन यह भी प्रस्ताव ठंडे बस्ते में ही नजर आ रहा है।

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