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इतिहास बन रहा जंग-ए-आजादी का अहम ठिकाना

By Edited By: Published: Tue, 26 Aug 2014 11:26 PM (IST)Updated: Tue, 26 Aug 2014 11:26 PM (IST)
इतिहास बन रहा जंग-ए-आजादी का अहम ठिकाना

देवरिया : जंग-ए-आजादी का अहम किरदार ऐतिहासिक गांव परसिया कूर्ह में इतिहास दोहराया जा रहा है। दूसरी बार गांव का वजूद समाप्त होने को है। लगभग तीन सौ घरों के गांव में गिनती के आधे-अधूरे तीन मकान शेष हैं। घाघरा की लहरें इस गाव को अपनी गोद में समाहित करने को लालायित हैं। लोग मकान तोड़ रहे हैं और प्रशासन इनके लिए कुछ नहीं कर रहा है। देश की आजादी के लिए शहीद हुए वीरों के परिजन असहाय और बेबस हैं।

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सरयू व राप्ती नदी के संगम तट पर बसा अपने गर्भ में गौरवशाली अतीत की सुनहरी यादें संजोए हुए है। लगभग ढाई सौ साल पहले वजूद में आए शहीदों और साहित्यकारों के इस गांव का स्वर्णिम इतिहास रहा है। यहां के जवानों में गुलामी की जंजीरों में जकड़ी मां भारती को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। विश्वनाथ मिश्र, रामहरष राय, रामलाल मिश्र ब्रितानी हुकूमत के दमन के शिकार हुए, पर अफसोस कि देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले इन शहीदों के गांव को आजादी के बाद बनने वाली सरकारों ने भुला दिया।

ढाई सौ साल पूर्व यह गांव मौजूदा स्थान से लगभग तीन किमी दक्षिण था। तब घाघरा नदी यहां छह किमी दक्षिण दिशा की तरफ प्रवाहमान थी। घाघरा ने धारा बदली तो यह गांव इतिहास बन गया। सबकुछ गांवों के बाद पूर्वजों ने एक-एक ईट रखकर बुलंद भविष्य की बुनियाद रखी, लेकिन सरकारों की अनदेखी से एक बार फिर इतिहास दोहराया जा रहा है। कटान से बेघर हुए लोग खानाबदोश जीवन जीने को विवश हैं।

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सरकारों ने हमें भुला दिया : चमेली देवी

स्वतंत्रता सेनानी रामलाल मिश्र की बेवा 90 वर्षीया चमेली देवी सरकार व प्रशासन से दु:खी है। कहती हैं कि जिस देश की आजादी के लिए मेरे पति ने यातनाएं सहीं, उसी देश की सरकारों ने हमें भुला दिया। कटान से न घर बचा और न खेती। इस तरह गृहस्थी उजड़ जाएगी सोंचा न था। परिवार लेकर हम कहां जाएं समझ में नहीं आता।

सोंचा न था यह दिन देखने पडे़ंगे : शैल कुमारी

बरहज के मुख्य चौक ब्रिटिश सेना के साथ लड़ते हुए कैप्टन की गोली से शहीद विश्वनाथ मिश्र की पुत्रवधू शैल कुमारी ने गांव की बर्बादी के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया। कहती हैं कि गांव की बर्बादी मेरे ससुर की शहादत का अपमान है। हम तबाह होते हैं और सरकार में शामिल लोग पूछने तक नहीं आए। रामहरष राय के पुत्र वंश बहादुर सिंह ने अब तो कुछ भी नहीं बचा। सरकारी सहायता मिलनी तो दूर कोई पूछने तक नहीं आया।


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