स्थानीय विद्यालय से ही पढ़कर पहुंचा विदेश
जागरण संवाददाता, चित्रकूट: अच्छी कमाई के लिए महंगे स्कूल में पढ़ाई वाले मिथक को तोड़ते हुए राधेश्याम
जागरण संवाददाता, चित्रकूट: अच्छी कमाई के लिए महंगे स्कूल में पढ़ाई वाले मिथक को तोड़ते हुए राधेश्याम रिसर्च करने दूर देश ताइवान पहुंच गया। इंटरमीडिएट तक उसने कर्वी में ही रहकर पढ़ाई की है। इलाहाबाद में बीएससी करने के बाद उसका चयन आईआईटी रुड़की में हुआ। वहां से फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पर उसे क्या पता था कि मौत का पंजा उसका हरदम पीछा कर रहा है। बड़े भाई का कहना है कि पढ़ाई लिखाई में वह हमेशा अव्वल रहता था।
राधेश्याम ने स्थानीय ज्ञान भारती इंटर कालेज से ही पढ़ाई की है। बड़े भाई शंकर दयाल ने बताया कि वर्ष 2004 व 2006 में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में क्रमश: 76 और 68 फीसद अंक हासिल किया था। इसके बाद उसने 60 फीसद अंकों के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी की डिग्री हासिल की। बीएससी करने के बाद उसका चयन आईआईटी रुड़की के लिए हो गया। वहां पर पढ़ाई के वक्त ही उसका कैंपस सेलेक्शन हो गया। रिसर्च करने के लिए ताइवान के ¨शझू शहर स्थित नेशनल री¨झग यूनीवर्सिटी में उसे दाखिला मिला। भाई शंकर ने कहा कि ज्यादा देर तक कभी पढ़ते नहीं देखा पर परीक्षा के बाद उसके नंबर कभी कम नहीं आए। भाई की तारीफ के दौरान वहां मौजूद लोगों ने कहा कि बुद्धिमान के लिए संसाधनों की कमी कभी आड़े नहीं आई। यदि धन खर्च करने पर ही बच्चे आगे निकलते होते तो गरीब लोगों के बच्चे कभी आगे नहीं बढ़ पाते। वैसे राधेश्याम के ऊपर यह बात सटीक बैठती है। वह स्थानीय विद्यालय से पढ़कर आईआईटी रुड़की और फिर ताइवान पहुंच गया।