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तालाब खुदाई बना कमाई का जरिया

जागरण संवाददाता, चित्रकूट : शायद आपने देखा होगा गांव के तालाब में हर साल फावड़े लेकर सैकड़ों मजदूर काम

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Apr 2017 07:59 PM (IST)Updated: Mon, 24 Apr 2017 07:59 PM (IST)
तालाब खुदाई बना कमाई का जरिया
तालाब खुदाई बना कमाई का जरिया

जागरण संवाददाता, चित्रकूट : शायद आपने देखा होगा गांव के तालाब में हर साल फावड़े लेकर सैकड़ों मजदूर काम करते हैं। यह मनरेगा मजदूर मिट्टी खोदते हैं और लाखों रुपए मजदूरी भी दी जाती है लेकिन अगले साल फिर उसी तालाब में मनरेगा मजदूर खुदाई करते देखे जा सकते हैं आखिर यह कैसा खेल है कि वही तालाब साल दर साल खोदा जाता है। जिस प्रकार तालाब खुदाई के नाम पर जिले में बजट खर्च हुआ है तो पाताल से पानी निकाला जा सकता है पर दुर्भाग्य है कि अधिकांश तालाब सूखे पड़े हैं।

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तालाबों की खुदाई का काम तो मनरेगा के पहले भी होता था। काम के बदले अनाज योजना के तहत मजदूर तालाब की खुदाई करते थे लेकिन जल संरक्षण एवं जल संचय के नाम पर तालाब खुदाई में तेजी मनरेगा के लागू होने के बाद से आई। मिट्टी के काम के नाम पर सिर्फ तालाब खुदाई का काम कराया जाता था। वर्ष 2010-11 में प्रदेश की बसपा सरकार ने जल संचयन के लिए आदर्श तालाब बनाने का बीड़ा उठाया। जनपद की 330 ग्राम पंचायतों में 298 आदर्श जलाशय बनाने का लक्ष्य रखा गया। प्रशासन ने करीब साढ़े 12 करोड़ रुपए खर्च करके वर्ष 2010-11 में 215 और वर्ष 2011-12 में 19 आदर्श जलाशय बना डाले। प्रशासन की नजर में बने 234 आदर्श जलाशयों का ग्रामीणों को कोई लाभ नहीं मिला। जो मानक निर्धारित किए गए थे उसमें से अधिकांश तालाब खरे नहीं उतरते हैं तमाम तालाबों में बैठने के लिए कुर्सी भी नहीं है, जानवरों के पानी पीने के लिए बनाए गए रैंप नहीं हैं जो बने थे इतने घटिया थे कि एक दो साल में ही क्षतिग्रस्त हो गए हैं। इन तालाबों में पौधरोपण कराया जाना था मगर कुछ को छोड़कर अधिकांश में बंधी खाली पड़ी है। सरकार की मंशा थी कि आदर्श तालाब ग्रामीणों को लिए पिकनिक स्पाट जैसे बने लेकिन करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद एक भी आदर्श तालाब नहीं बन सका।

ऐसा नहीं है कि आदर्श तालाब बनाने के बाद इन तालाबों में खुदाई का काम नहीं हुआ। हर साल मनरेगा मजदूर इनमें सैकड़ों मानव दिवस काम करते है। वर्ष 2016-17 के मनरेगा आकड़ों पर ही नजर डाले तो पाएंगे कि जिले में जल संरक्षण एवं संचय के नाम पर करीब 11 करोड़ रुपए खर्च किए गए। जिसमें 9.54 करोड़ रुपए मनरेगा श्रमिकों को मजदूरी देने में खर्च किए गए। इसी प्रकार चालू साल में भी करीब 72 लाख रुपए का खर्च जल संरक्षण में हो चुका है। यह आंकड़े बताते हैं कि एक-एक तालाब में कई-कई बार खुदाई हो चुकी है लेकिन वह पानीदार नहीं हुए। यदि ऐसे में यह कहा जाए कि तालाब खुदाई ग्राम प्रधान व संबंधित कर्मचारियों के लिए कमाई का जरिया बनी है तो अतिसंयोक्ति नहीं होगी।


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