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चित्रकूट में विश्व का पहला लोकतंत्र स्थापित हुआ

By Edited By: Published: Tue, 12 Mar 2013 01:12 AM (IST)Updated: Tue, 12 Mar 2013 01:17 AM (IST)
चित्रकूट में विश्व का पहला लोकतंत्र स्थापित हुआ

चित्रकूट, जागरण संवाददाता : चित्रकूट ही वह कालजयी तीर्थ है जहा पर आकर सारी संस्कृतिया मिल जुल जाती है। यही वह धरती है जहा विश्व का पहला लोकतंत्र स्थापित हुआ। राज सत्ता को छोड़कर प्रभु श्रीराम ने त्याग और लोक सेवा का विकल्प प्रस्तुत किया गया। आज मानव की जटिलताओं को सुलझाने का यह एक ही तीर्थ है, जहा अहंकार को छोड़कर लोक के प्रति समर्पण का भाव जाग्रत होता है।

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यह विचार बांदा से आए डा. चंद्रिका प्रसाद 'ललित' ने प्रभु श्रीराम की तपोभूमि में चल रहे पांच दिवसीय राष्ट्रीय रामायण मेला की विद्वत गोष्ठी में कहे। डा. ललित ने कहा कि 'चित्रकूट यह जड़ जंगम है, राम कथाओं का संगम है।' कानपुर के डा. विजय प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि 'राम कथा जे सुनहि अघाही, रस विशष जाना तिन नाहीं।' श्रीराम चरित्र एक ऐसा सुंदर श्रवणामृत है जिसे जितना पिया जाए। उतनी ही प्यास बढ़ती जाती है। प्रत्येक बार एक नए आनंद की अनुभूति होती है। प्रभु राम के गायन का मुख्य हेतु है कि हम भी उनके दिव्य चरित्र से प्रेरणा लेकर अपने जीवन की दिशा निर्धारित करें। जिसके लिए प्रभु ने अवतार लिया था।

कानपुर के डा. पुरुषोत्तम नारायण बाजपेई ने कहा कि चित्रकूट वह तपोभूमि है जहां पर ईश्वर व जीव का मिलन हुआ। यहां पर प्रभु श्रीराम लक्ष्मण और जानकी जी के साथ विराजते हैं। लक्ष्मण जी यानी वैराग्य, सीताजी यानी पराभक्ति। इसी वैराग्य व पराभक्ति को साथ लेकर भगवान श्रीराम चित्रकूट में अर्थात चित्त के अंतर में विराजते हैं। उनके भाई भरत जी जीव के रुप में मिलने आते हैं। प्रभु के इस मिलन का चिंतन ही समस्त पापों को नष्ट करता है। फैजाबाद के डा. हरि प्रसाद दुबे ने कहा कि रामकथा मन्दाकिनी समस्याओं का समाधान करती है। आचरण का प्रभाव जीवन में अधिक पडता है। राम बड़प्पन बड़ों को देकर छोटो से मागकर लोक नायक बनते हैं।

गोष्ठी में लक्ष्मी प्रसाद शर्मा, रामभरोस तिवारी, डा. तीरथ दीन पटेल, विश्रामदास रामायणी, सीताराम शरण रामायणी छिन्दवाड़ा, मानस मन्दाकिनी पाण्डेय चिरगाव, डा. महेश चन्द्र शुक्ला उन्नाव, वीरेन्द्र प्रसाद मिश्रा मुम्बई आदि विद्वानों ने रामचरित मानस के विभिन्न प्रसंगो पर सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया। संचालन डा. सीताराम विश्वबन्धु ने किया।

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