धर्म की हानि होने पर होता है प्रभु का अवतरण
चंदौली: ' जब-जब होई धरम कै हानि, बाढै असुर अधम अभिमानी- तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा, हरहों कृपा निधि
चंदौली: ' जब-जब होई धरम कै हानि, बाढै असुर अधम अभिमानी- तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा, हरहों कृपा निधि सज्जन पीरा ' अर्थात पृथ्वी पर जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब रूप बदलकर प्रभु का अवतरण होता है। भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा भी है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है वे स्वयं अवतरित होते हैं।
उक्त बातें मानस व अध्यात्म प्रचार समिति की ओर से शिव मंदिर में चल रहे श्री रामकथा की पांचवी निशा में बद्री बाबा ने कहीं। कहा कि जब दुर्जन अधर्म करते हैं तो धर्म की हानि होती है और जब अच्छाई बुराई का कार्य करने लगती है तो धर्म की ग्लानि होती है। धर्म की ग्लानि व हानि दोनों धर्म पर कुठाराघात करते हैं। प्रवचन की अगली कड़ी में डा. उमाशंकर त्रिपाठी ने निर्भरा शक्ति की व्याख्या करते हुए कहा कि सुंदरकांड में तुलसीदास जी भगवान श्रीराम से निर्भरा शक्ति मांगते हैं। जीव पर जब भगवान और भगवती दोनों की कृपा होती है तो उसे निर्भरा शक्ति प्राप्त हो जाती है। मां जानकी की कृपा से हनुमान जी को सेवा व समर्पण के कारण यह शक्ति प्राप्त हुई थी। मां सीता की लंका में खोज करने हनुमान जी दूत बनकर गए थे और पूत बनकर लौटे। रांची से आई साध्वी जयश्री रामायणी ने राम विवाह की चर्चा करते हुए कहा कि राम- सीता का विवाह चार प्रकार का हुआ। पुष्प वाटिका में गंधर्व, स्वयंवर में प्रण व स्वयंवर और राजा जनक के आंगन में उनका वैदिक रीति से विवाह हुआ। भरत के नाम की व्याख्या करते हुए पं. रामचंद्र मिश्र ने कहा कि भ का अर्थ भरण पोषण, र का अर्थ रक्षा व त का अर्थ तपस्या होता है। जीव के शरीर में इन तीनों की त्रिवेणी बह रही है। कथा के यजमान जयशंकर व ओमप्रकाश ¨सह थे।इस अवसर पर हरिद्वार ¨सह, भानुप्रताप शर्मा, हरिहर ¨सह आदि उपस्थित थे।