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नहर का जाल फिर भी गेट छलके बेजार

शिकारगंज (चंदौली) : कहने को तो क्षेत्र में नहर, माइनरों का जाल बिछा है। जगह-जगह पर गेट (फाटक), छलके

By Edited By: Published: Sun, 23 Nov 2014 11:15 PM (IST)Updated: Sun, 23 Nov 2014 11:15 PM (IST)
नहर का जाल फिर भी गेट छलके बेजार

शिकारगंज (चंदौली) : कहने को तो क्षेत्र में नहर, माइनरों का जाल बिछा है। जगह-जगह पर गेट (फाटक), छलके बनाए गए हैं। ..पर इनकी दुर्दशा देखते ही बनती है। मामूली खर्च में तैयार होने वाले फाटक (गेट) की मरम्मत करा पाना विभाग मुनासिब नहीं समझ रहा है। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की सिंचाई इन जर्जर नहरों के गेट के भरोसे हो पाना कठिन दिख रहा है।

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उचेहरा माइनर के शुरुआती स्थल पर लगे गेट का मकसद रहा कि उचेहरा गांव के पास टेल के सैकड़ों बीघे खेतों की सिंचाई सुलभ हो सके। लेकिन दशकों से उक्त लोहे के गेट का निचला हिस्सा क्षतिग्रस्त पड़ा हुआ है। धान की फसल पानी के अभाव में पूरी तरह बर्बाद हो गई। माइनर की यही स्थिति रही तो रबी की फसल भी चौपट होने से इन्कार नहीं किया जा सकता।

किसान हिम्मत बहादुर सिंह, शमशेर सिंह, कमलेश पति कुशवाहा आदि का कहना है कि गेट की चादर बदलने अथवा मरम्मत कराने में महज दो से पांच हजार रुपये खर्च की आवश्यकता है। बावजूद इसके सिंचाई विभाग चुप्पी साधे हुए है। किसानों ने बताया कि खरीफ व रबी की फसल के दौरान पानी की आवश्यकता पड़ती है। तो जर्जर गेट के चलते टेल तक के खेत बंधी व पानी होने के बावजूद असिंचित रह जाते हैं।

वहीं निचले हिस्से के खेत जलमग्न बने रहते हैं। इससे किसानों की खेती चौपट हो जाती है। किसान किसी भी सूरत में गेट की मरम्मत के प्रति फिक्रमंद है। किसानों ने अविलंब गेट की मरम्मत करने के लिए जिलाधिकारी से मांग की है।


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