खा चुके हैं कसम कि नहीं सुधरेंगे हम
बरहनी (चंदौली): हम कसम खा चुके हैं कि नहीं सुधरेंगे। चट्टी चौराहों पर हम स्वस्थ्य व स्वच्छ रहने की ब
बरहनी (चंदौली): हम कसम खा चुके हैं कि नहीं सुधरेंगे। चट्टी चौराहों पर हम स्वस्थ्य व स्वच्छ रहने की बाते तो खूब करते है,लेकिन उस पर थोड़ा भी अमल नहीं कर पा रहे हैं। इसका नतीजा है कि हमारा पर्यावरण बिगड़ता ही जा रहा है,जो खतरे का संकेत है। आखिर इस बात को जान कर भी अंजान क्यों बनते जा रहे हैं और कूड़े कचरे से गलियों, सड़कों, नदी, नालों और तालाबों में पाटते जा रहे हैं। जो अनुचित ही नहीं पर्यावरण के साथ अन्याय भी है। इसका गवाह है ककरैत घाट की त्रिमुहानी व अदसड़ गांव का तालाब।
ककरैत में ठीक पुलिया के पास पूरे कस्बे के कूड़े कचरे का अंबार है। इसकी संड़ाध से बराबर दुर्गध निकालती रहती है। कभी-कभी तो दुर्गध से लोगों को आजिज आकर उस ओर से भागना भी पड़ता है। इस वर्ष स्थिति और बद से बदतर है। क्योंकि हर वर्ष तो सावन भादो में नदी उफनाती थी तो कुछ कूड़े का पानी के भार से सफाया हो जाता था लेकिन इस वर्ष नदी के उफान नहीं मारने से कूड़े कचरे में इजाफा होता जा रहा है।
यहीं हाल अदसड़ गांव के पूरब तरफ स्थित पुराने तालाब का है। जिसमें गांव के आधे से अधिक घरों के नाबदान का पानी वर्षो से गिरता है और उसकी निकासी कहीं से भी नहीं है। जो पूरे मुहल्ले के कूड़े कचरे से पटा दिखाई दे रहा है और उसका पानी सड़ कर एकदम से काला हो चुका है। इसके पास से गुजरने में दुर्गध तो आती ही रहती है और कई संक्रामक रोगों को दावत देता है। यहीं नहीं गांव के पश्चिम तरफ जो इस वर्ष आरसीसी ढलाई हुई है। ढलाई के बगल के गडढे में कूड़े कचरे का अंबार है। यह कूड़ा कचरा दीपावली के बाद से और अधिक हो गया है। इससे कमोवेश वहीं स्थिति उत्पन्न हो गई और लोगों का राह चलना दुश्वार हो गया है। कहने को तो सभी बड़ी बड़ी बाते करते है परंतु उस पर अमल नहीं करते। इसके लिए किसी ने किसी को तो आगे आना होगा।