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आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूट रहे हैं सावन के गीत और मल्हार

डा. राकेश गौतम बीबी नगर : कच्चे नीम की निंबोली सावन जल्दी अईयौ रे..हरियाली तीज और सावन मास में गा

By JagranEdited By: Published: Tue, 25 Jul 2017 10:14 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jul 2017 10:14 PM (IST)
आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूट रहे हैं सावन के गीत और मल्हार
आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूट रहे हैं सावन के गीत और मल्हार

डा. राकेश गौतम बीबी नगर :

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कच्चे नीम की निंबोली सावन जल्दी अईयौ रे..हरियाली तीज और सावन मास में गाए जाने वाले यह गीत और मल्हार समय के बदलाव व आधुनिकता की दौड़ में मानो खो गए हैं। हरियाली तीज के अवसर पर भी न तो झूले नजर आ रहे हैं और न ही लोक गीतों के स्वर। झूला तो पड़ गया अमवा की डाल पै री..अथवा सावन आया री बहना मेरी झूल लै री..जैसे हरियाली तीज के गीत व झूला झूलती महिलाओं की हंसी ठिठोली बदलते सामाजिक परिवेश में दम तोड़ रही है। आपसी प्रेम, सौहार्द व उत्साह की प्रतीक हरियाली तीज की सदियों पुरानी परंपरा का स्वरूप खोती जा रहा है। कुछ समय पूर्व तक सावन का महीना प्रारम्भ होते ही सावन के गीत और मल्हार की आवाज गली और मोहल्लों में सुनाई देने लगती थी। पेड़ों पर झूले डल जाते थे तथा महिलाएं घरेलू काम निपटा कर सज धज कर समूह में झूला झूलती थीं। सावन की मस्ती और उमंग कुछ अलग ही दिखती थी। लेकिन आपाधापी और भाग दौड़ भरी जीवन शैली में मानो सामाजिक परंपराएं दम तोड़ रही हैं। अब तो तीज पर्व पर झूला झूलना मात्र औपचारिकता बनकर रह गया है। नगर निवासी प्रभा देवी पुरानी स्मृतियों को याद कर बताती हैं कि महिलाओं को सावन का बेसब्री से इंतजार होता था। अगर घर आंगन में पेड़ नहीं होता था तो ¨हडोले का प्रबंध किया जाता था। सावन का महीना प्रारम्भ होते ही झूले डल जाते थे। किसी एक घर का चुनाव कर महिलाओं का समूह वहां झूला झूलने जाता था। यह क्रम तीज तक बरकरार रहता था। अनारो देवी आपसी प्रेम तथा विश्वास की कमी को तीज पर्व के वर्तमान स्वरूप की वजह मानती हैं। उनका कहना है कि पुराना जमाना आपसी प्रेम,भाईचारे व सद्भाव का था। न कोई रंजिश न ईष्र्या न द्वेष। सभी महिलाएं मिलजुल कर झूला झूलती थीं। सावन के गीत और मल्हार गाये जाते थे। अब तो मानो पुराना जमाना खत्म हो गया है। सामाजिक चरित्र में गिरावट आई है। आपसी कड़वाहट बढ़ी है। कटुता का जहर घुल गया है। इसी के चलते सब कुछ मानो बदरंग हो गया है। नव विवाहिता शालू का कहना है कि अब तो यह भी मालूम नहीं होता कि सावन कब आया और कब चला गया। तीज के दिन घर की महिलाएं झूला झूलकर मानो रस्म अदायगी करती हैं। समाजशास्त्री डा. शशिबाला संयुक्त परिवारों के विघटन और जीवन शैली में आये बदलाव को इसके लिये जिम्मेदार मानती हैं। लोक

कला, संस्कृति व लोकगीतों के प्रति घटते रुझान को भी वह कारण मानती हैं।

बीबी नगर: मिलिट्री हीरोज मेमोरिलय इंटर कालेज में छात्राओं ने हरियाली तीज मनाई। मंगलवार को एमएचएम इंटर कालेज की छात्राएं हरियाली तीज के उपलक्ष्य में कालेज प्रांगण में झूला डालकर उत्साह पूर्वक झूला झूलीं। छात्राओं ने इस अवसर पर सावन के लोक गीत भी गाये।

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