किसानों का डीएपी से मोह भंग, यूरिया से कर दी गेहूं की बुवाई
बुलंदशहर : नोटबंदी की मार सबसे अधिक किसानों की गेहूं की बुवाई पर पड़ी है। कैश की किल्लत से बेहाल किसा
बुलंदशहर : नोटबंदी की मार सबसे अधिक किसानों की गेहूं की बुवाई पर पड़ी है। कैश की किल्लत से बेहाल किसानों ने गेहूं की बुवाई डीएपी की बजाय यूरिया से कर दी है। अब तक पिछले साल से 2026 मीट्रिक टन खाद की बिक्री घट गई है, जबकि यूरिया की बिक्री 642 मीट्रिक टन बढ़ गई है।
गेहूं की बुवाई का सीजन चरम पर है। 15 दिसंबर तक गेहूं की बुवाई होगी। गेहूं की बुवाई के लिए डीएपी खाद प्रयोग की जाती है। सीजन शुरू होने से पहले ही सरकार ने सहकारिता विभाग व इफको व कृभको के करीब 154 सेंटरों पर डीएपी व यूरिया का पर्याप्त स्टॉक सुरक्षित कराया था। 30 नवंबर तक पिछले साल 18658 मीट्रिक टन खाद की बिक्री हुई थी, जबकि इस साल 16631 मीट्रिक टन हुई है। पिछले साल यूरिया की बिक्री 6397 मीट्रिक टन हुई थी, जबकि इस साल 7030 मीट्रिक टन हो गई है। माना जा रहा है कि नोटबंदी की समस्या से परेशान किसानों ने गेहूं की बुवाई में डीएपी के स्थान पर यूरिया का इस्तेमाल किया है। एआर कोआपरेटिव अशोक कुमार यादव का कहना है कि गेहूं की बुवाई के समय डीएपी खाद की बिक्री कम होना चिंताजनक है। इससे इस बात का अंदेशा है कि यूरिया खाद डीएपी से 730 रुपये कम होने के कारण किसानों ने यूरिया से ही गेहूं की बुवाई कर दी है। उनका कहना है कि गेहूं का बीज भी इस साल मात्र 1995 कुंतल बिका, जबकि पिछले साल 4720 कुंतल बिका था।