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26 साल में नहीं भूल पाए रेबीज का दंश

बुलंदशहर: 26 साल पहले रेबीज ने जहांगीराबाद के मोहल्ला पेच कालोनी के एक युवक की जान ले ली थी लेकिन उ

By Edited By: Published: Mon, 26 Sep 2016 09:44 PM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2016 09:44 PM (IST)
26 साल में नहीं भूल पाए रेबीज का दंश

बुलंदशहर: 26 साल पहले रेबीज ने जहांगीराबाद के मोहल्ला पेच कालोनी के एक युवक की जान ले ली थी लेकिन उस बीमारी के दंश से परिवार आज तक नहीं उबर पाया है। 48 साल की उम्र होने के बावजूद महिला पैदल ही जहांगीराबाद चीनी मिल में नौकरी कर रही हैं। जैसे-तैसे कर बेटा-बेटी को पढ़ाया, लेकिन जैसे ही रैबिज पर चर्चा शुरू होती हैं तो परिवार के सदस्यों की आंखें आसुओं से भर आती हैं।

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जहांगीराबाद के पेच कालोनी निवासी सुमित शर्मा ने बताया कि पिता राजीव शर्मा जहांगीराबाद चीनी मिल में नौकरी करते थे। घर में मां शशी शर्मा, बहन ज्योति शर्मा और वह खुद थे। वर्ष 1990 में जून का महीना चल रहा था। पिता गंगा स्नान के लिए नरौरा जा रहे थे। गंगा स्नान को जाते समय रास्ते में उन्हें कुत्ते ने काट लिया। घर पर आकर पिता का देशी उपचार किया। जख्म कुछ दिनों में ठीक हो गया और पिताजी भी सामान्य जीवन जीने लगे। करीब दो महीने बाद पिता को तेज बुखार हुआ। कुछ दिन घर पर उपचार कराया, लेकिन आराम नहीं हुआ। जब जांच कराई तो पता चला कि शरीर में रैबिज फैल गया है। पिताजी को तेज बुखार रहने लगा और कुछ दिनों बाद वह पानी से डरने लगे। दिल्ली के अस्पतालों में कराए गए उपचार का भी कोई फायदा नहीं हुआ। बाद में रैबिज के इंजेक्शन लगवाए, उनसे भी बीमारी पर नियंत्रण नहीं हुआ। तबीयत अधिक खराब होने पर 28 अगस्त को उनकी मौत हो गई।

मां ने हर दिन पांच किमी चलकर पाला पेट

सुमित शर्मा ने बताया कि पिता की मौत के समय उनकी उम्र साढ़े तीन वर्ष थी। छोटी बहन ज्योति भी मात्र दो महीने की थी। पिताजी के स्थान पर जहांगीराबाद चीनी मिल में मां शशी शर्मा को नौकरी मिल गई। चीनी मिल तक आने-जाने का कोई साधन नहीं था। मां हर दिन पांच किमी पैदल चलकर नौकरी करती और घर पर मेरा और बहन का पूरा ख्याल रखती। बाद में मैंने प्राइवेट सेक्टर जॉब में नौकरी कर मां का हाथ बंटाया। मां आज भी 48 साल की उम्र में जहांगीराबाद चीनी मिल में पैदल नौकरी कर परिवार के लिए पाई-पाई जोड़ती हैं।

आज भी सालता है दर्द

सुमित शर्मा ने बताया कि पिता की मौत के बाद परिवार के सदस्यों से तिरस्कार मिला। आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी परिवार टूट गया। किसी ने कभी मदद की कोई कोशिश नहीं की। रैबिज की वजह से पिताजी का असमय जाना आज भी सालता है।


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